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________________ द्वितोयः पादः अचलपुर शब्द में चकार और लकार का व्यत्यय होता है । उदा०-- असचपुरं। महाराष्ट्र हरोः ॥ ११९॥ महाराष्ट्रशब्दे हरोव्यत्ययो भवति । मरहट्ठ। महाराष्ट्र शब्द में ह और र का व्यत्यय होता है । उदा०-मरहट्ठ । हृदे हदोः ।। १२० ॥ ह्रदशब्दे हकारदकारयाव्यत्ययो भवति । द्रहो । आर्षे । हरए। महपुण्डरिए। ह्रद शब्द में हकार और दकार का व्यत्यय होता है। उदा०-द्रहो । आष प्रास में ( द्रह शब्द में स्वर भक्ति होती है । उदा०-) हरए महपुण्डरीए । हरिताले रलोन वा ॥ १२१॥ हरितालशल्दे रकारलकारयोव्यत्ययो वा भवति । हलिआरो । हरिआलो। हरिताल शब्द में रकार और लकार का व्यत्यय विकल्प से होता है। उदा. ---- हलिभारो, हरिआलो। __ लघुके लहोः ।। १२२ ॥ लघकशब्दे घस्य हत्वे कृते लहोव्यत्ययो वा भवति। हलुअ लहअं। घस्य व्यत्यये कृते पदादित्वात् हो न प्राप्नोतीति हकरणम् ।। लघुक शब्द में, घ का ह करने पर, ल और ह का व्यत्यय विकल्प से होता है। उदा०—हलुअं, लहुअं। घ का व्यत्यय किए जाने पर, घ पद आदि (स्थान में ) होता है. इसलिए उसका ह नहीं होता है; ( अतः पहले ही घ का ) ह करना है। ललाटे लडोः ॥ ५२३ ॥ ललाटशब्दे लकारडकारयोव्यत्ययो भवति वा । णडाल णलाडं। ललाटे च ( १.२५७ ) इति आदेलंस्य णविधानादिह द्वितीयो ल: स्थानी।। ललाट शब्द में लकार और डकार का व्यत्यय विकल्प से होता है ! उदा.णडालं, णलाई । 'ललाटे च' सूत्रानुसार आदि ल का ण होने के कारण यहाँ द्विीतीय ल स्थानी है ( अतः धितोय ल और ड का व्यत्यय विकल्प से होता है)। १. ह्रदे महापुण्डरीके । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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