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________________ ३८ य-पचए गुहाहुना गा । पविसंति गुहा पर भीया पडिव उज्जोयणसूरिविरड्या [६७६1 जाव असि-चक-सोमर-पूरे पूय-वसा-रुहिर-मुत्त विच्छिड़े । अगिंगाला-मुम्मुर-णिवहे मह वरिसए जलमो॥ तह तेण ते परद्धा वेयालिय-पच्चए गुहाहुत्ता । धावंति धावमाणा दीणा सेल्लेहिँ हम्मंता ॥ ३ पत्ता वि तत्थ केई गुरु-वज-सिलाभिघाय-दलियंगा। पविसंति गुहाएँ मुहं बितियं णरयं व घोर-त॥ ६७७) अह पलय-काल-जलहर-गजिय-गुरु-राव-दूसहं सदं । सोऊण परं भीया पडिवह-हत्तं पलायति ॥ तस्थ वि पलायमाणा भीम-गुहा-कडय-भित्ति-भाएहिं । मुसुमूरियंगमंगा पीसंते सालि-पिटुं व ॥ कहकह वि तत्थ चुक्का णाऊण एस पुब्ब-वेरि त्ति । वेउब्बिय-सीह-सियाल-सुणय-सउणेहिँ घेति ॥ तेहि वि ते खजंता अंछ-विच्छं खरं च विरसंता । कहकह वि किंचि-सेसा वज-कुडंगं अह पविट्ठा ॥ अह ते वियण-परद्धा खण मेत्तं ते वि तत्थ चिंतेति । हा हा अहो अकर्ज मूढेहिँ कयं तमंधेहिं ॥ . तइओ चिय मह कहियं णरए किर एरिसीओ वियणाओ। ण य सदहामि मूढो एहि अणुहोमि पञ्चक्र्ख ॥ हा हा भणिओ तइया मा मा मारेसु जीव-संघाए । ण य विरमामि अहण्णो विसयामिस-मोहिओ संतो॥ मा मा जंपसु अलियं एवं साहूण उवइसंताणं । को व ण जंपइ भलियं भणामि एवं विमूढ-मणो ॥ 12 साईति मज्झ गुरुणो पर-दव्वं णेय घेप्पए किंचि । एवमहं पडिभणिमो सहोयरो कत्थ मे दवं ॥ साइंति साहुणो मे पर-लोय-विरुद्धयं पर-कलत्तं । हा हा तत्थ कहंतो पर-लोओ केरिसो होइ ॥ जहणे भणंति गुरुणो परिग्गहो णेय कीरए गुरुओ। ता कीस भणामि अहं ण सरइ अम्हं विणा इमिणा ॥ 16 जहणे भणति साधू मा हु करे एत्तियं महारंभं । ता कीस अहं भणिमो कह जियउ कुडंबयं मज्झ ॥ संपइ तं कत्थ गर्य रे जीव कुडंबयं पियं तुज्झ । जस्स कए अणुदियहं एरिस-दुक्खं कयं पावं ॥ तइया भणति गुरुणो मा एए णिहण संबर-कुरंगे । पडिभणिमो मूढप्पा फल-साग-सरिच्छया एए॥ 18 इय चिंतेति तहिं चिय खण-मेत्तं के वि पत्त-सम्मत्ता । गुरु-दुक्ख-समोच्छइया अवरे एवं ग चाएंति ॥ मह ताण तक्खणं चिय उद्धावइ वण-दवो धमधमेंतो । पवणाइद्ध-कुडंगो दहिउँ चिय तं समाढत्तो॥ मह तत्थ डज्झमाणा दूसह-जालोलि-संवलिय-गत्ता । सत्ता वि सउम्मत्ता भमंति णरयम्मि दुक्खत्ता ॥ अवि य । । सरकांत-समागम-भीसणए दुसहाणल-जाल-समाउलए । रुहिरारुण-पूय-वसा-कलिए सययं परिहिंडइ सो णरए ॥ इय दुक्ख-परंपर-दूसहए खण-मेत्त ण पावइ सइ सुहए । कय-दुक्कय-कम्म-विमोहियया भम रे सुह-वजिययं जियया ॥ सम्व-स्थोवं कालं दस-वास-सहस्साइँ पढमए णरए । सव्व-बहुं तेत्तीसं सागर-णामाण सत्तमए । 84 एयं च एरिसं भो दिढे वर-णाण-दसण-धरेहिं । तं पि णरणाह अण्णे अलियं एवं पर्यपंति ॥ ६७८) अण्णे भणति मूढा सग्गो गरओ व्व केण भे विट्ठो। अवरे भणति णरओ वियव-परिकप्पिो एसो॥ जे चिय जाणति इमं णरयं ते चेय तत्थ वच्चंति । अम्हे ण-याणिमो चिय ण वञ्चिमो के विजपंति ॥ 27 अण्णाणं अण्णाणं ण-याणिमो को वि एस णरओ त्ति । अवरे भणंति अवरा जं होही तं सहीहामो ॥ संसार-णगर-कयवर-सूयर-सरिसाण णत्थि उब्वेओ। किं कोइ डोंब-डिंभो पडय-सहस्स उत्तसह ॥ अणुदियहम्मि सुणेता अवरे गेण्हंति णो भयं चिट्ठा। मेरी-कुलीय पारावय व्व भेरीऍ सद्देणं ॥ 30 णरय-इ-णाम-कम्म अवरे बंधति णेय जाणंति । ता ओदिसंति मूढा अवरे जस्सोवरिं रोसो॥ भवरे चिंतेति इमं कलं विरमामि अज विरमामि । ताव मरंति अउण्णा रहिया ववसाय-सारेणं ॥ दे विरम विरम विरमसु पावारंभाओ दोग्गइ-पहाओ । इय विलवताणं चिय साहूर्ण जंति णरयस्मि ॥ 33 ताणरणाह सयण्णो जो वा जाणाइ पुण्ण-पावाई। जो जाणइ सुंदर-मंगुलाई भावेइ सो एयं ॥ णरए णेरड्याण जं दुक्खं होइ पञ्चमाणाणं । अरहा ते साहेज व कत्तो अम्हारिसा मुक्खा ॥ 1 1)" कुंत for तोमर, P पूर for पूय, P om. मुत्त, P अधिगाला, P नियरे for णिवहे. 3) P गुहाभिमुहं वायंतरये च पोर-- 4) I भीता P भीया. 5) P'यंगवंगी, पिस्सते, P सालिीपडं. 6) F सुयणेहिं for सउणेहि. 7) P तहं मि ते खज्जता अच्छिविअच्छक्खर, P वज्जकुडंगेसु पइसति ॥ वज्ज कुडंगपविद्रा खणमेत्तं तत्थ किंचि चिंतेति। 8) P अहा for अहो, धम्मेहिं for मंधेहि. 9) P तत्तो for तइओ. 10) P संघार्य, विसयाविस, P संते. 11) P मूढ़ for एयं. 12) Pom. 'ए किंचि, सहोअरं. 13) Pom. पर, P भणामो for कहतो. 14) Pनो for णे, परिग्गओ, गरुओ, P तरह for सरह. 15) Pणो for णे, साहू साहुकारे, P जियइ. 17) P सायरससिच्छया एते. 18) P चिंतति, P गुरुदत्तसमो. एतेच्छ", P चायंति. 19)Pउवायद. 20) P"माणो, P संपलित्तंगा, P निरयंमि. 21) Jहीसणए P भीसणाए, पूअसमा P पूइवसा. 22) P पाविय, P भमिरे, P वज्जिय जं. 23) P त्योयं, P सहस्साई मं. 24) एरिसो, दिहि, P नारनाह, Pएयं ति जपंति. 25) वियढपरियपिओ. 26)P वुच्चंते. 27)P होहि त्ति तं. 28)Pनयर, P repeats कयवर, P उब्वेवो, P के वि for कोर, Pपडियसहसउब्वियइ. 29) दवा for चिट्ठा, Pकुलाय पारावह ब्व भीरीय सद्धेण. 30) गई, P ता for ताओ, अइसंति P उदिसंतु, J जस्सोवरी जस्सावरिं. 31) P चितंति इमो, P थिरमामि सकयसंकेया ।, P ववसारेयसारेण. 32) Pom. विरम. 33) जे वा जाणंति, P जो जीणइ, P सो एवं. 34) Pj for जं, मुका. www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001869
Book TitleKuvalayamala Katha Sankshep
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdyotansuri, Ratnaprabhvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1959
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size14 MB
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