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श्रीपार्श्वनाथस्तोत्रम् पावेई इच्छियसुहं ___ ॐ ह्री श्री मयु स्वाहा ॥ १९ ॥ रोगजलजलणविसहरचोरारिमइंदगयरणभयाइं । पासजिणनामसकित्तणेण पसमंति सव्वाई ॥२०॥
१ अतः परं गाथा इमाः"तं नमह पासनाहं, धरणिंदनमंसियं दुहं पणासेइ । तस्स पभावेण सया, नासंति सयलदुरियाई ॥१८॥ एए समरंताणं, मणेणिं न दुहं वाही नासमाहिदुक्खं । नाम चिय मंतसमं, पयडो नत्थित्थ संदेहो ॥ १९ ॥ जलजलण तह सप्पसीहो, चोरारी संभवे वि खिप्पं । जो समरेइ पासपह, पहवइन कया वि किंचि तस्स ॥ २०॥ इहलोगट्ठी परलोगट्ठी जो समरेइ पासनाहं तु । तत्तो सिजोइ न, कोसइ (संति) नाह सुरा भगवंतं ॥ २१ ॥"
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