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________________ (सुखी होने का उपाय भाग - ५ टीका :- वास्तव में सभी वस्तु सामान्य विशेषात्मक होने से वस्तु का स्वरूप देखने वालों के क्रमशः १ सामान्य और २ विशेष को जाननेवाली दो आँखें हैं :- १ द्रव्यार्थिक और २ पर्यायार्थिक । ९४) भावार्थ द्रव्यार्थिकनयरूपी एक चक्षु से देखने पर द्रव्य सामान्य ही ज्ञात होता है, इसलिये द्रव्य अनन्य अर्थात् वह का वही भासित होता है और पर्यायार्थिकनय रूपी दूसरी एक चक्षु से देखने पर द्रव्य के पर्यायरूप विशेष ज्ञात होते हैं, इसलिये द्रव्य अन्य- अन्य भासित होता है ।” - इसप्रकार द्रव्यार्थिक एवं पर्यायार्थिकनय के प्रयोग द्वारा सम्पूर्ण सामान्य विशेषात्मक वस्तु को मुख्य गौण व्यवस्थापूर्वक समझा जा सकता है व उसका ज्ञान भी किया जा सकता है। तात्पर्य यह है कि अज्ञानी जीव को अपने आत्मद्रव्य के स्वरूप का ज्ञान ही नहीं है । इसलिये जब तक वह उसको विस्तारपूर्वक नहीं समझेगा तो उसको अपने आत्मा के कल्याण का मार्ग कैसे प्राप्त हो सकेगा ? इसलिये आत्मकल्याण के उद्देश्य से, द्रव्यार्थिकनय के द्वारा बताया गया, अपने त्रिकालीस्वभाव का स्वरूप समझंकर, उसरूप परिणमन करने की भावना उत्पन्न होती है। इसी प्रकार अपने अंदर उत्पन्न होने वाले रागद्वेषादि भाव एवं आकुलतारूपी भावों का स्वरूप समझकर, ये भाव नवीन मेरी ही पर्याय में उत्पन्न होते हैं, लेकिन पर्याय ही अनित्यस्वभावी है, नाश होने योग्य है, अतः उनका उत्पादन रुक जाना चाहिये । पर्यायार्थिकनय के द्वारा पर्याय का स्वरूप समझने से, इसप्रकार की भावना जाग्रत होती है। आगम के आधारपूर्वक, सत्समागम द्वारा यथार्थ मार्ग प्राप्तकर, निश्चय - व्यवहार नयों के स्वरूप को समझकर उसके यथार्थ प्रयोग द्वारा आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। इसप्रकार द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिकनयों का प्रयोग, मुख्यता से वस्तु का स्वरूप समझने के लिए अत्यन्त उपयोगी है साथ ही आत्मा की साधना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001866
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size13 MB
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