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(सुखी होने का उपाय भाग - ५
केन्द्रित हो जावे, यह तो निर्णय करना ही होगा। तभी मुझे आकुलता का अभाव होकर आत्मिक शांति प्राप्त होना संभव है। अतः मेरे उक्त प्रयोजन को सिद्ध करने के लिये जाने हुए वस्तु स्वरूप में से, क्या प्रयोजनभूत है और क्या अप्रयोजन भूत है यह समझकर, प्रयोजनभूत को मुख्य बना कर, उसको आश्रयभूत मानते हुए अपनी परिणति को उस ओर केन्द्रित करना और अप्रयोजनभूत के प्रति उपेक्षा बुद्धि उत्पन्न कर, अपनी परिणति उस ओर नहीं जावे और सिमटकर आत्म सन्मुख हो इस ही का नाम निश्चय मोक्षमार्ग एवं व्यवहार मोक्षमार्ग है और परिणति की उक्त दशाओं को जानने वाली ज्ञान पर्यायों का नाम ही निश्चयनय एवं व्यवहारनय है।
ज्ञान क्रिया की सांगोपांग यथार्थ समझ के द्वारा, यथार्थ निर्णयप्राप्त कर, जिस विषय को मुख्य मान लेगा, और श्रद्धा भी दृढ़ हो जावेगी, तब उस ही ओर उपयोग सहित परिणति अग्रसर हो जाती है। इस ही दशा प्राप्त उक्त परिणति का नाम निश्चयमोक्षमार्ग है और उस ज्ञान का नाम ही निश्चय - नय है । साथ ही जिसको समझकर श्रद्धा ने हेय माना है, तथा ज्ञान ने गौण किया है, फिर भी उसका अस्तित्व तो समाप्त नहीं हुआ है, पर्याय में विद्यमान हैं, और निश्चय- मोक्षमार्ग के साथ रहते हुए भी उसको हानि नहीं करता, इसलिए उसको व्यवहार- मोक्षमार्ग एवं उक्त ज्ञान के उपयोग को व्यवहार-नय कहा गया है। यह विषय विविध परिभाषाओं के माध्यम से आगे स्पष्ट होगा ।
पूज्य श्री कानजीस्वामी ने समयसार की गाथा ९२ के प्रवचन में यह बात निम्न शब्दों में स्पष्ट की है :
“ धर्म प्रगट करने का प्रयोजन सिद्ध करने के लिए त्रिकाली ध्रुवद्रव्य को मुख्य करके, उसको निश्चय कहकर, सत्यार्थ कहा है। वर्तमान पर्याय के आश्रय से सम्यग्दर्शनादि प्रगट होता नहीं हैं, बल्कि रागादि विकल्प होते हैं इसलिए पर्याय का आश्रय छुडाने के लिए, उसको गौण करके
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