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________________ ७०) (सुखी होने का उपाय भाग - ५ यहाँ प्रश्न होता है कि जब दोनों का विषय एक ही है तो अलगअलग नाम देकर चार भेद क्यों कर दिये । मात्र दो ही भेद से काम चल सकता था। समाधान- ऐसा मानना यथार्थ नहीं है। द्रव्यार्थिक, पर्यायार्थिक आगम के नय हैं, उनका उद्देश्य वस्तु के स्वरूप को यथार्थ समझने का होता है और निश्चय-व्यवहार तो आत्मा का अनुभव कराने के लिए उपयोगी है। अत: दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। दोनों प्रकार के नयों का विषय एक होते हुए भी, दोनों के उद्देश्य भिन्न-भिन्न हैं। अत: सर्वप्रथम द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक नय के माध्यम से, अपने आत्मा के स्वरूप का अर्थात् संपूर्ण पदार्थ का यथार्थ ज्ञान करना अर्थात् समझना चाहिए। उसके पश्चात् किस का आश्रय करना अर्थात् किसमें अपनापन करना अर्थात् किसको महत्वपूर्ण मानना, उसके लिए निश्चय-व्यवहार का प्रयोग ही कार्यकारी होगा। द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक नय के द्वारा समग्र पदार्थ का स्वरूप समझ में आने पर भी अपना मूल प्रयोजन जो एक मात्र वीतरागता के द्वारा आत्म शांति प्राप्त करना था, वह तो प्राप्त नहीं हुआ? अत: वह शांति प्राप्त करने का उपाय तो, मात्र निश्चय-व्यवहार के यथार्थ प्रयोग करने की पद्धति को समझना ही है। उस विधि की यथार्थ समझ द्वारा, इस निर्णय पर पहुँचना होगा कि निश्चय नय का विषय आश्रय करने योग्य अर्थात् मुख्य मानने योग्य है, व्यवहार नय का विषय नहीं। यह महत्वपूर्ण निर्णय निश्चय-व्यवहार के यथार्थ स्वरूप को समझे बिना संभव नहीं है। निश्चय-व्यवहार के विषयों का यथार्थ परिज्ञान एवं निर्णय करके, अपनी अन्तर्परिणति को अर्थात् उपयोग को, मुख्य माने हुए विषय में, ऐक-मेक करना ( अभेद करना) तथा गौण माने हुए विषय के प्रति उपेक्षा बुद्धि अर्थात् परभाव जाग्रत कर, उससे अपनी परिणति-उपयोग को व्यावृत करना अर्थात् हटाना, यह यथार्थ मोक्ष-मार्ग है। यही एक मात्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001866
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size13 MB
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