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________________ १८८ ) (सुखी होने का उपाय भाग - ५ पर निःशंक विश्वास होना बताया। इस पर से प्रश्न उपस्थित होता है कि मार्ग की यथार्थता की पहिचान करने के लिए हमारे पास कसौटी क्या है ? समाधान : कसौटी तो आत्मा की आत्मा के पास ही हो सकती है, आत्मा से बाहर तो हो ही नहीं सकती, अतः हमारी बुद्धि ही इस का निर्णय करने की वास्तविक कसौटी है। जैसे कसौटी के पत्थर पर सुवर्ण की परीक्षा करने के लिए सर्वप्रथम १०० टंच से शुद्ध स्वर्ण की लकीर बना ली जाती है, फिर उसको मुख्य बनाकर जो भी मिश्रित अशुद्ध स्वर्ण आता है उसकी भी लकीर बना ली जाती है और दोनों मिलान करने से ही, उस अशुद्ध स्वर्ण में भी शुद्ध स्वर्ण का मूल्यांकन कर लिया जाता है । इसीप्रकार अपनी बुद्धिरूपी कसौटी पर अर्थात् ज्ञान में, शुद्ध स्वर्ण के समान, परमशुद्ध आत्मा अर्थात् सिद्ध भगवान की आत्मा का स्वरूप शुद्ध स्वर्ण की लकीर के समान ज्ञान में उतार लेना चाहिए और उसी को हमेशा मुख्य रखकर आगम के सभी कथनों को समझना चाहिए। आगम के जो कथन उस शुद्धस्वरूप को प्राप्त करने का मार्ग बतावें, उन कथनों को निश्चय कथन अर्थात निश्चय मोक्षमार्ग यानी यथार्थ मोक्षमार्ग स्वीकार एवं उपादेय मानते हुए यही मार्ग सत्य है ऐसी निःशंक श्रद्धा उत्पन्न करना चाहिए । समस्त द्वादशांग के उपदेश का सार है तो मात्र यही है कि अपने आत्मा के शुद्ध स्वरूप का ज्ञान - श्रद्धान करना । समयसार की गाथा ४ एवं ५ में भी आचार्यश्री ने "शुद्ध आत्मा", जिसका स्व से एकत्व है एवं पर सबसे विभक्त है ऐसे परमशुद्ध आत्मा को दिखाने की प्रतिज्ञा की है । यथा - है सर्व श्रुत-परिचित अनुभूत, भोग बंधन की कथा । पर से जुदा एकत्व की, उपलब्धि केवल सुलभना ॥ ४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001866
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size13 MB
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