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________________ १४) (सुखी होने का उपाय भाग - ५ प्रकार के भाव ही अनुभव में आते हैं? अलग आत्मा का अस्तित्व तो कहीं दिखता ही नहीं है? उक्त समस्या को सुलझाने के उपायों का वर्णन भाग-२ में है। उसके अध्ययन के माध्यम से नवतत्त्वों के स्वरूप को समझकर, उनकी भीड़-भाड़ में छिपे हुए हमारे ज्ञायकतत्त्व को पहिचान लेने की विधि को भी, उक्त भाग-२ के माध्यम से समझा। मेरा जीवद्रव्य स्वयं नित्य ध्रुवद्रव्य होते हुए भी, उसमें हर समय परिणमन भी होते ही हैं अर्थात् मेरे जीवद्रव्य का अस्तित्व ही उत्पाद-व्यय-धौव्य स्वभावी है। वह तो स्थाई नित्य रहते हुए भी, हर समय परिवर्तन करेगा ही, वह एकरूप रह ही नहीं सकता। अत: मेरी ऐसी स्थिति में, परिवर्तन करती हुई पर्यायों के पीछे छिपा हुआ, जो ध्रुव-नित्य-एकरूप रहने वाला स्थाई भाव है, वह ही मैं जीवतत्त्व हूँ। नयज्ञान के माध्यम से पर्यायों को गौण करके, स्थाईभाव को मुख्य करके, देखने पर, अनादिकाल से जो हमारी दृष्टि से ओझल हो रहा था, पर्यायों की भीड़ के पीछे छिपा हुआ था, उस जीवतत्त्व की पहिचान हो जाती है। इसप्रकार हमने हमारे नित्य स्थाई ज्ञायकतत्व को, यथार्थ समझ के द्वारा, स्व के रूप में निश्चित कर स्वीकार कर लिया। उसके साथ ही निरन्तर वर्तने वाली पर्यायों को भी पर के रूप में समझकर स्वीकार कर लिया। इसप्रकार की यथार्थ समझ प्राप्त होने पर, मुझे श्रद्धा अर्थात् विश्वास हो गया कि मेरे ही अन्दर उठने वाले अनित्यभाव, मेरी आत्मोपलब्धि के लिये हेयतत्त्व हैं और इन स्वभावों के परिवर्तनों के समय भी, उपादेय तो मात्र एक मेरा ज्ञायकतत्त्व ही है, वही इनका जाननेवाला भी है, वही मैं हूँ। इस आत्मा ने भाग-१ के माध्यम से छहद्रव्यों में अपनापन दूर कर, एकमात्र अपने जीवद्रव्य में ही, अपनापन स्थापन करके, सारे विश्व के साथ सभी प्रकार का संबंध तोड़ दिया था। भाग-२ के अध्ययन से अपने जीवद्रव्य में भी, अपनी ही पर्यायों में, परपना आ जाने से, हेयबुद्धि कर, मात्र अपना ज्ञायकतत्त्व ही स्व के रूप में रह जाता है और वही उपादेय है। अत: अब तो मात्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001866
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size13 MB
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