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विषय परिचय)
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विषय परिचय सुखी होने का उपाय एकमात्र आत्मानुभूति ही है। आत्मानुभूति कहो अथवा सुखानुभूति कहो, दोनों एकार्थवाची हैं। अनुभूति अर्थात् वेदन के ही दो नाम हैं। अपने आत्मा के उपयोग का सारे जगत से लक्ष्य हटकर, एकमात्र स्वआत्मा में एकाग्र हो जाना; लीन हो जाना ही आत्मानुभूति है। वह उपयोग अन्य गुणों को भी अपने साथ लेकर ही आत्मा में जाता है - अकेला नहीं जाता, इस ही को आगम में परिणति कहा जाता है। आत्मा में लीन हो जाने पर, उपयोग परिवर्तन - ज्ञप्ति परिवर्तन का अवकाश ही नहीं रहता। फलत: निराकुल आनंद का वेदन प्रगट हो जाता है । ऐसी स्थिति प्राप्त करने का उपाय ही वास्तविक 'सुखी होने का उपाय है। उक्त स्थिति प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम अपनी आत्मा का यथार्थ स्वरूप एवं पर के यथार्थ स्वरूप का ज्ञान होकर, परिणति को आत्मा में अभेद होने का मार्ग समझना अत्यन्त आवश्यक है। इस ही श्रृंखला में 'सुखी होने का उपाय' पुस्तक का लेखन प्रारंभ हुआ है।
भाग - १ का विषय इसके प्रथम भाग के द्वारा विश्व की व्यवस्था अर्थात् छह द्रव्यों की स्थिति एवं उनके साथ आत्मा का संबंध किसप्रकार है, इस विषय को समझा। उन सबमें, आत्मा ही एक जानने वाला द्रव्य है, अपने ज्ञानस्वभाव के द्वारा स्व और पर को जानता है। अन्य पांचों द्रव्य तो अचेतन हैं वे न तो अपने को जानते हैं और न पर को ही जानते हैं, फिर भी उन सबका परिणमन तो हर समय, एकसाथ होता ही रहता है। अत: किन्हीं दो द्रव्यों का एक सरीखा परिणमन होना भी स्वाभाविक है। ऐसे परिणमन के संबंध को बतलाने वाले संबंध को आगम में निमित्त-नैमित्तिक
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