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( सुखी होने का उपाय भाग - ४
हमारे अनुभव के आधार पर भी सिद्ध होता है कि आकुलता आत्मा का स्वभाव नहीं है । निराकुलता तो आत्मा का स्वभाव होने से उसका उत्पादन नहीं करना पड़ता । स्वभाव का कभी उत्पादन नहीं किया जाता । अतः सिद्ध है कि निराकुलता आत्मा का स्वभाव है । आत्मा सुखस्वभावी ही है
आत्मा अनाकुल सुख का खजाना है, यह विश्वास कैसे
प्रश्न
किया जावे ?
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उत्तर
हमारे अनुभव में है कि आत्मा जब शान्त स्वभाव में विद्यमान रहता है तो वह अनाकुलता कहाँ से आ रही है ? अगर कुएं में जल ही नहीं होगा तो पात्र में आवेगा कहाँ से ? पात्र में आया है तो स्पष्ट है कि कुएं में जल था । इसीप्रकार आत्मा की व्यक्त पर्याय में जब निराकुलता आ रही है तो अगर उस का भण्डार आत्मा नहीं होता तो यह आती कहाँ से ? अत: स्पष्ट है कि उक्त अनाकुलता का असीमित भण्डार आत्मा ही है।
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आचार्यश्री अमृतचन्द्रदेव समयसार के परिशिष्ट में आत्मा की अनन्त शक्तियों में से मात्र ४७ शक्तियों का ही स्वरूप बता पाये, उनमें ही एक सुख शक्ति भी बताई है, वह इसप्रकार है “अनाकुलत्वलक्षणा सुखशक्तिः ॥ ४ ॥
“ अनाकुलता जिसका लक्षण अर्थात् स्वरूप है ऐसी
अर्थ सुखशक्ति ।”
उपरोक्त आगम वाक्य से भी स्पष्ट है कि अनाकुलता ही आत्मा का स्वरूप अर्थात् स्वभाव है ।
हरएक द्रव्य अपने-अपने अनन्तगुणों के समुदायरूप एक वस्तु है अर्थात् उस द्रव्य का अस्तित्व ही अपनी-अपनी अनन्त शक्तियों (गुणों) के समुदाय एक वस्तु के रूप में है । द्रव्य जहाँ जिस किसी स्थिति में हो, वो अपनी शक्तियों सहित ही रहेगा। क्योंकि वस्तुत्व नाम की शक्ति भी
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