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________________ १६६) ( सुखी होने का उपाय भाग-४ संबंध है। ऐसा संबंध राग का उत्पादक नहीं होता। इसका प्रमाण है भगवान अरहंत का ज्ञान । ऐसे ज्ञेय-ज्ञायक संबंध को निमित्त-नैमित्तिक संबंध के नाम से भी कहा जाता है। क्योंकि ज्ञेय द्रव्य एवं ज्ञायक द्रव्य दोनों निरपेक्ष रहकर भी, एक समय एक सरीखा परिणमन कर रहे हैं। इसप्रकार दोनों द्रव्यों के स्वतंत्र परिणमन होते हुये भी उनका निमित्त-नैमित्तिक रूप संबंध कहना, व्यवहार कथन है। उस समय के उपादानरूप परिणमन का परिचय कराने के लिये, उस पर्याय को नैमित्तिक कहा जाता है। ऐसा नाम ही अज्ञानी को भ्रम का कारण बन जाता है। वस्तुस्वरूप का ज्ञान होने से ऐसे अज्ञान का नाश होता है। ज्ञान की पर्याय में ज्ञेयरूप निमित्त का आकार देखकर, ज्ञेय की मुख्यता से ज्ञान की पर्याय को ज्ञेयाकार भी कहा जाता है, वास्तव में तो ज्ञानपर्याय अपनी योग्यता से ही उस आकार परिणमी है। इस अपेक्षा भी ज्ञेय-ज्ञायक के इसप्रकार के संबंध को निमित्त-नैमित्तक संबंध के नाम से जिनवाणी में कहा गया है। उपरोक्त सभी संबंधों की वास्तविक स्थिति से यह स्पष्ट हो जाता है कि ज्ञान में ज्ञेय ज्ञात होने पर भी आत्मा का उनके साथ कर्ता-कर्म अथवा अन्य कोई प्रकार का संबंध बन ही नहीं सकता, क्योंकि दो भिन्न-भिन्न सत्ताधारी द्रव्यों में किसीप्रकार का संबंध कैसे हो सकता है? ___ ज्ञाता ज्ञेय संबंध में राग की उत्पत्ति क्यों? प्रश्न - हमारे ज्ञान में भी ज्ञेय ही तो ज्ञात होते हैं फिर हमको (अज्ञानी को) राग क्यों हो जाता है? उत्तर - केवली का ज्ञान परज्ञेयों से अत्यन्त निरपेक्ष रहते हुये परिणम रहा है अत: किंचित् भी राग का उत्पादक नहीं होता। इसीप्रकार ज्ञानी का ज्ञान भी जितने अंश में ज्ञेय निरपेक्ष वर्तता है उतने अंश में वह भी राग का उत्पादक नहीं होता। तदनुसार श्रद्धा ने भी ज्ञेयों से अपनेपन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001865
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1999
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size11 MB
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