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________________ १५० ) ( सुखी होने का उपाय भाग - ४ अर्थ – पदार्थ द्रव्यस्वरूप है; द्रव्य गुणात्मक कहे गये हैं; और द्रव्य तथा गुणों से पर्यायें होती हैं । पर्यायमूढ जीव परसमय (अर्थात् मिथ्यादृष्टि) हैं ।” इस ही गाथा की टीका के अन्त में परसमय की व्याख्या करते हुए लिखते हैं कि ――― “वास्तव में यह सर्वपदार्थों के द्रव्य-गुण-पर्यायस्वभाव की प्रकाशक पारमेश्वरी व्यवस्था भली/ उत्तम / पूर्ण / योग्य है, दूसरी कोई नहीं; क्योंकि बहुत से जीव पर्यायमात्र का ही अवलम्बन करके, तत्त्व की अप्रतिपत्ति जिसका लक्षण है ऐसे मोह को प्राप्त होते हुए परसमय होते हैं ।” उपरोक्त टीका के अन्त में वर्णित सर्वपदार्थों के द्रव्य-गुण-पर्याय स्वभाव की प्रकाशक व्यवस्था को आचार्यश्री ने “पारमेश्वरी व्यवस्था” कहा है। तथा उसको भली, उत्तम, पूर्ण, योग्य भी कहकर, अन्य कोई व्यवस्था है ही नहीं, ऐसा भी निर्देश किया है । अत: उक्त गाथा ९३ की टीका का निम्नांश समझना आवश्यक है । वह निम्नप्रकार है “ उसमें, अनेक द्रव्यात्मक एकता की प्रतिपत्ति की कारणभूत द्रव्यपर्याय है । वह दो प्रकार है । (१) समानजातीय और (२) असमानजातीय । उसमें (१) समानजातीय वह है । जैसे कि अनेक पूद्गलात्मक द्विअणुक, त्रिअणुक इत्यादि (२) असमानजातीय वह है जैसे कि जीवपुद्गलात्मक देव, मनुष्य इत्यादि । गुण द्वारा आयत ( पर्याय) की अनेकता की प्रतिपत्ति की कारणभूत गुण- पर्याय है। वह भी दो प्रकार है । (१) स्वभावपर्याय और (२) विभावपर्याय। उसमें समस्त द्रव्यों के अपने-अपने अगुरुलघुल गुण द्वारा प्रतिसमय प्रगट होने वाली षटस्थानहानिवृद्धिरूप अनेकत्व की अनुभूति वह स्वभावपर्याय है, (२) रूपादि के या ज्ञानादि के स्व-पर के कारण प्रवर्त्तमान पूर्वोत्तर अवस्था में होने वाले तारतम्य के कारण देखने में आने वाले स्वभाव - विशेषरूप अनेकत्व की आपत्ति विभावपर्याय है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only ―― - www.jainelibrary.org
SR No.001865
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1999
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size11 MB
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