SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४० ) ( सुखी होने का उपाय भाग-४ गाथा १५९ की टीका से भी उक्त कथन का समर्थन प्राप्त होता __ “जो यह (१५६वीं गाथा में) परद्रव्य के संयोग के कारण रूप में कहा गया अशुद्धोपयोग है, वह वास्तव में मंद-तीव्र उदय दशा में रहने वाले परद्रव्यानुसार परिणति के आधीन होने से ही प्रवर्तित होता है, किन्तु अन्य कारण से नहीं । इसलिए यह मैं समस्त परद्रव्य में मध्यस्थ होऊँ और इसप्रकार मध्यस्थ होता हुआ मैं परद्रव्यानुसार परिणति के अधीन न होने से शुभ अथवा अशुभ ऐसा जो अशुद्धयोपयोग उससे मुक्त होकर मात्र स्वद्रव्यानुसार परिणति को ग्रहण करने से जिसको शुद्धोपयोग सिद्ध हुआ है, ऐसा होता हुआ, उपयोगात्मक द्वारा (उपयोग रूप निजस्वरूप से) आत्मा में ही सदा निश्चलरूप से उपयुक्त रहता हूँ। यह मेरा परद्रव्य के संयोग के विनाश का अभ्यास है।" इसप्रकार यह निश्चित होता है कि ज्ञानतत्त्व की यथातथ्य प्रतीति करना ही ज्ञेयतत्त्वों के प्रति मित्रता का अभाव करने का एकमात्र उपाय है। ज्ञेयस्वभाव ज्ञेय तो पर हैं, उनकी यथार्थ प्रतीति क्यों? ज्ञायक (ज्ञानतत्त्व) की यथातथ्य प्रतीतिपूर्वक, ज्ञेय मात्र मेरे से भिन्न पर हैं ऐसी प्रतीति ही मोक्षमार्ग प्राप्त करने का प्रथम सोपान है। ज्ञेयों की स्थिति का यथार्थज्ञान करे बिना वे यथार्थत: मेरे से भिन्न एवं पर हैं, ऐसी प्रतीति कैसे उत्पन्न हो सकेगी? अनादिकाल से जिनको मैंने स्व के रूप में स्वीकार कर रखा है, उनको पर के रूप में मानना अत्यन्त कठिन कार्य है । अत: ज्ञेय तत्त्वों के स्वरूप को जब तक गंभीरता से मनोयोगपूर्वक नहीं समझा जावेगा, तब तक वे मेरे से भिन्न हैं-पर हैं, ऐसी प्रतीति जागृत नहीं हो सकेगी। उनमें परपने की श्रद्धा जागृत हुए बिना, अनादिकाल से चला आ रहा अपनापन कभी छूट नहीं सकता। जब तक ज्ञेयों में अपनापन एवं सुखबुद्धि बनी रहेगी तब तक स्वतत्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001865
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1999
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy