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________________ ९६) ( सुखी होने का उपाय भाग-३ द्रव्यार्थिक, पर्यायार्थिक, निश्चयव्यवहार के हेतु हैं आलाप पद्धति में मूल नयों की चर्चा में कहा है कि - “सर्व नयों के मूल निश्चय और व्यवहार- ये दो नय हैं । द्रव्यार्थिकनय व पर्यायार्थिकनय। ये दोनों निश्चय - व्यवहार के हेतु हैं।" उक्त छन्द का अर्थ इसप्रकार भी किया गया है - “नयों के मूलभूत निश्चय और व्यवहार दो भेद माने गये हैं। उसमें निश्चयनय तो द्रव्यार्थिक है और व्यवहारनय पर्यायार्थिक है" - ऐसा समझना चाहिए । उपरोक्त प्रकार से द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक नयों का विवेचन भी निश्चय-व्यवहार के हेतु हैं, पूरक हैं यह सिद्ध होता है। अर्थात् वे भी निश्चय-व्यवहार को पुष्ट करने के लिये ही हैं। साथ ही यह भी स्पष्ट किया है कि निश्चयनय तो द्रव्याश्रित है। अर्थात अभेद अनुपचरित अखण्ड द्रव्य ही द्रव्यार्थिकनय का विषय है और वही निश्चयनय का विषय है। इसके अतिरिक्त जो कुछ भी बाकी रह जाते हैं वे सब व्यवहारनय के विषय हैं, पर्यायार्थिक नय के विषय हैं। निश्चय व्यवहार का स्वरूप आलाप पद्धति में निश्चय-व्यवहार का लक्षण निम्नप्रकार किया अभेदानुपचरितया वस्तु निश्चीयत इति निश्चयः । भेदोपचरितयावस्तु व्यवह्रियत इति व्यवहारः ।। अर्थ – अभेद और अनुपचार रूप से वस्तु का निश्चय करना निश्चय है और भेद तथा उपचार रूप से वस्तु का व्यवहार करना व्यवहार आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी ने समयसार गाथा २७२ की टीका में निश्चय-व्यवहार की निम्न परिभाषा दी है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001864
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2000
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size8 MB
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