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अनुभूति में इन्द्रियज्ञान बाधक कैसे ? )
(८९ मनजन्य ज्ञान आत्मा का प्रबल घातक प्रश्न - पाँच इन्द्रिय के विषयों में तो सुख का आभास लगता भी है, लेकिन मन के विषय में तो ऐसा कुछ लगता ही नहीं। अत: उससे आत्मा का अहित कैसे हो सकता है?
उत्तर- यथार्थत: मनजनित ज्ञान तो इन्द्रियज्ञान से भी आत्मा का अधिक अहित करने वाला है ऐसा हमारे २४ घण्टे का लेखा जोखा करें तो विश्वास में आ सकेगा। इन्द्रियज्ञान तो विषय सामने आने पर ही उसमें अटकता है, लेकिन मन तो निरंतर ही उपयोग को रोके रखता है। २४ घण्टे ही व्यस्त रखता है इसलिये मनजन्य ज्ञान इन्द्रिय ज्ञान से भी बड़ा शत्रु है। दूसरी अपेक्षा देखें तो कर्मबंध में अर्थात आत्मा का भविष्य निर्माण करने में मुख्य भूमिका मनजन्य ज्ञान की ही है। मन में कुत्सित विचार आते ही पाप प्रकृतियों का बंध होता है और मंद कषाय के भाव
आने पर पुण्य प्रकृतियों का बंध हो जाता है। जैसे किसी को जान से मारने के विचारों के समय, किसी इन्द्रिय द्वारा तो कुछ पाप कार्य नहीं हो रहा है फिर भी मनगत विचारों के कारण नरक आदि कुगति का बंध होता है । इसप्रकार मनगत विचार तो २४ घंटे चलते ही रहते हैं । इसप्रकार आत्मा को सबसे ज्यादा हानि पहुंचाने वाला मनगत ज्ञान है । कषाय की मन्दता एवं तीव्रता के द्योतक भी विचार ही हैं। अत: बंध के मुख्य कारण मनगत विचार ही हैं।
थोड़ा सा वैराग्य प्रेरक उपदेश सुनने पर इन्द्रिय विषयों के प्रति अरुचि अथवा विरागता उत्पन्न होकर इन्द्रिय विषयों से विरक्ति हो जाना सरल है। लेकिन मनगत विचारों के प्रति विरक्त होना असंभव तो नहीं लेकिन अत्यन्त कठिन अवश्य है। कारण हमको ऐसा लगता ही नहीं कि मनगत विचार आत्मा के घातक हो सकते हैं । फलत: आत्मार्थी इन्द्रिय विषयों से विरक्त होकर भी, मनगत विचारों के संबंध में अनभिज्ञ होने
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