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( सुखी होने का उपाय भाग - ३
के मध्य में आये बिना घर से बाहर निकला नहीं जा सकता। लेकिन वे दरवाजे न तो स्वामी को निकालने को प्रेरित करते हैं और न रहने के लिए । निकलने से दरवाजे का एक अंश भी स्वामी के साथ नहीं जाता । उसी प्रकार आत्मा का परलक्ष्यी ज्ञान अपनी तत्समय की योग्यतानुसार जिस किसी भी ज्ञेय को विषय बनाने को प्रवृत्त होगा, पाँच इन्द्रियाँ व मन इन छहों में से कोई न कोई दरवाजे के समान बीच में आये बिना नहीं रह सकती । परलक्ष्यी ज्ञान की योग्यता ही ऐसी है कि वह इनके माध्यम से ही अपने विषय को जान सकेगा । इसप्रकार के प्रवर्तन में अंश मात्र भी इन्द्रियादि ने ज्ञान को सहायता नहीं दी है। ये तो मात्र बीच में आ पड़े दरवाजे के समान हैं। लेकिन परलक्ष्यी ज्ञान की ऐसी पराधीनता अवश्य है । जैसे अन्धा देखने का कार्य, बहरा सुनने का कार्य नहीं कर सकता। हर स्थिति में जानने का कार्य तो आत्मा का ही है, इन्द्रियों का नहीं। जैसे मुर्दे के शरीर में इन्द्रियाँ तो सभी सुरक्षित दिखती हैं फिर भी जानने का कार्य बंद क्यों हो गया ? यह सिद्ध करता है कि जानने का कार्य करने वाला आत्मा ही था वह निकल गया । अतः जानने की क्रिया का भी अभाव हो गया ।
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अतः सिद्ध है कि इन्द्रियाँ ज्ञान की उत्पादक नहीं हैं
अज्ञानी का ज्ञान राग एवं कर्त्ताबुद्धि का उत्पादक
प्रश्न - परलक्ष्यी ज्ञान इन्द्रियों के माध्यम से भी कार्य तो जानने काही करता है ? .
उत्तर - अज्ञानी को पर में अपनापन होने से उसका परलक्ष्यीज्ञान, जिस किसी को भी विषय बनाता है, उसको इष्ट अनिष्ट की कल्पना पूर्वक जानता है । फलत: इष्ट के प्रति राग एवं अनिष्ट के प्रति द्वेष करे बिना रह ही नहीं सकता । इस ही कारण इन्द्रियजन्य ज्ञान रागादि का उत्पादक है । राग संसार वृद्धि का कारण होने से उसकी हेय कहकर निंदा की गई है ।
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