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________________ ४६ ) ' ( सुखी होने का उपाय भाग - ३ का अभाव हो जाने से परम निराकुलतारूपी शान्ति प्रगट हो गई। इनके अतिरिक्त आत्मा के अनन्त गुण भी पूर्ण विकसित हो जाने से उनकी आत्मा परमात्मा होकर परम अतीन्द्रिय आनन्द को चिरकाल तक भोगते रहेंगे । यदि समस्त शक्तियाँ ध्रुव में विद्यमान नहीं होती तो पर्याय में कैसे प्रगट हो जातीं? इससे सिद्ध होता है कि समस्त शक्तियाँ जो उनके ध्रुव में विद्यमान थीं। वे सभी वर्तमान में मेरे ध्रुव में भी विद्यमान हैं, लेकिन विकास हुए बिना उनका आत्मा को लाभ नहीं मिल पाता । उपरोक्त शक्तियों का धारक मेरा ध्रुव भाव मेरे में सदैव विद्यमान हुए भो अनन्त काल से मैंने विश्वास नहीं किया श्रद्धा नहीं की; फलत: उनका विकास करने का प्रयास भी कभी नहीं हुआ । अब उपरोक्त कथन को समझकर उस पर दृढ़ विश्वास लाकर सामर्थ्यो का विकास कर स्वयं अरहन्त बनने के मार्ग को गुरु उपदेश, सत् समागम, जिनवाणी अध्ययन आदि द्वारा जैसे बने वैसे, समझकर नि:शंक श्रद्धा लाकर रुचिपूर्वक अनुसरण करना चाहिए । यही जीवन को सार्थक बनाने का उपाय है। होते ध्रुवभाव की श्रद्धा से लाभ कैसे ? ध्रुव की श्रद्धा उसी आत्मार्थी को कार्यकारी होगी। जिसके अन्तर में स्वयं अरहन्त बनने की तीव्र भावना जाग्रत हुई हो और जिसने अरहन्त की आत्मा के स्वरूप को समझकर, उनके प्रति अन्तर में आकर्षण उत्पन्न हुआ हो एवं यह विश्वास श्रद्धा जाग्रत हो जावे कि जो सामर्थ्य भगवान अरहन्त में प्रगट हुई है, वह सब मेरे आत्मा में विद्यमान है, तो उसको अपना ध्रुव हो आकर्षण का केन्द्र सहज ही बन जावेगा तथा सर्वश्रेष्ठ लगने लगेगा। उसकी समस्त रुचि उस ओर ही आकर्षित हो जावेगी और पूर्ण पुरुषार्थ लगाकर वैसी दशा प्रगट करने को उद्यमशील हुए बिना नहीं रहेगा। जैसे किसी धनिक सेठ के इकलौते अवयस्क पुत्र का किसी ने अपहरण कर लिया हो फिर उसको कहीं अनजान स्थान पर छोड़ दिया हो तो वह बालक भीख मांगता हुआ वयस्क भी हो जाता है : अपने को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001864
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2000
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size8 MB
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