________________
अरहन्त की आत्मा द्वारा अपनी आत्मा को समझना )
( ४३
प्रगटीकरण वह पर्याय है । अरहन्त की आत्मा में प्रगट हुई सामर्थ्यो का धारक (स्वामी) उनका आत्मा ही है । अतः भगवान अरहन्त ही सर्वज्ञ, वीतरागी एवं परम सुखी हैं।
अब समझना है कि वह स्थान कौन है जिसमें सब सामर्थ्य बसे हुए हैं? समाधान है कि सत् की परिभाषा ही है. 'सत् द्रव्य लक्षणं' एवं 'उत्पादव्ययधौव्ययुक्तंसत्' । समस्त गुण अथवा सामर्थ्य भी ध्रुव होते हैं। क्योंकि उन गुणों में न तो कभी-कमी होती है और न बढ़ोत्तरी ही अनादि अनन्त शाश्वत ध्रुव (जैसा विकास प्रगट हुआ वैसे ही) एक से बने रहते हैं । अत: ध्रुव (द्रव्य) एवं अनन्त गुण तो त्रिकालवर्ती एक सरीखे बने रहते हैं अत: वे दोनों तो ध्रुव ही हैं।
भगवान अरहन्त की पर्याय तो अनन्त गुणों के पूर्ण विकास को प्राप्त हो जाने से ध्रुव के समान ही पर्याय भी हो गई है ओर वैसी की वैसी ही अनन्त काल तक उत्पाद-व्यय करती हुई वर्तती रहेगी । अतः अरहन्त के द्रव्य में अथवा गुणों में अथवा पर्यायों में कोई असमानता नहीं रही। इसलिए भगवान अरहन्त को ध्रुव से देखो तो वैसा ही, गुणो से देखो तो वैसा ही तथा पर्याय में देखो तो वैसा, एकरूप ही ज्ञात होगा । इसप्रकार आचार्यश्री ने प्रवचनसार की गाथा ८० के द्वारा भगवान अरहन्त को द्रव्य से, गुण से एवं पर्याय से पहिचानने का निर्देश किया है ।
अरहन्त के द्वारा अपने ध्रुव की पहिचान
भगवान अरहन्त की आत्मा की जो शक्तियाँ विकसित होकर, पर्याय में प्रगट हो गई वे शक्तियाँ आत्मा के ही द्रव्य-गुणों में बसी हुई थीं । पर्यायें तो अनित्यस्वभावी हैं, अतः गुणों का पर्याय में रहना संभव ही नहीं है। इसलिए वे सभी शक्तियाँ अपने-अपने गुणों में सदैव शाश्वत बसी रहती हैं और अनन्त गुणों का स्वामी द्रव्य अर्थात् 'ध्रुव' है । द्रव्य का ध्रुव नाम सार्थक इसलिए है कि वह अनन्त शक्तियों को समेटे
हु
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org