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________________ आत्मज्ञता प्राप्त करने का उपाय ) ( २५ भी अरहंत जैसे ही गुणों की विद्यमानता, द्वारा ही आत्मा का शुद्ध आत्मस्वरूप, पहिचाना जा सकता है । उपर्युक्त सारे कथन का केन्द्रविन्दु भगवान अरहंत की आत्मा को उनके गुणों की व्यक्तता के माध्यम से पहिचानना है । प्रश्न - भगवान् अरहंत की आत्मा में गुण तो अनंत हैं अत: सबके स्वरूप को समझना तो संभव नहीं लगता ? उत्तर - जिन गुणों के स्वरूप समझने से हमारा प्रयोजन सिद्ध हो, उन गुणों को तो समझना ही है, जिससे कि नवतत्त्वों की भीड़ में छुपा हुआ आत्मस्वरूप, मेरी दृष्टि में आ सके। यह तो स्पष्ट है कि अरहंत और मेरे आत्मा के गुणों में समानता होते हुए भी वर्तमान में उन गुणों की व्यक्तता में अन्तर है। अज्ञानी को अपने स्वरूप की अनभिज्ञता के साथ-साथ ज्ञान की कमी, रागद्वेष की विद्यमानता एवं आकुलता का वेदन अनुभव में आता है। इनका अभाव करने का निरन्तर प्रयास भी है। जिनवाणी में भी इनके अभाव को ही मोक्षमार्ग बताया है। अत: हमको श्रद्धा, ज्ञान, चारित्र एवं सुख इन चार गुणों को मुख्य करके ही हमारे आत्मस्वरूप को समझना है। इनका अन्तर ही भगवान अरहन्त में और मेरी आत्मा में मुख्य अन्तर है। - भगवान अरहंत को तो आत्मस्वरूप स्पष्ट प्रगट है, अत: उनका उसमें ही “अहंपना” “मैंपना” विद्यमान है। लेकिन हमको आत्मस्वरूप की अनभिज्ञता होने से हम अपने आत्मा को भूलकर, अन्य अनेक ज्ञेयों में “मैंपना” माने हुये है। लेकिन वे ज्ञेय तो मेरे होते नहीं, फलत: निरन्तर की असफलता के कारण दुःख का वेदन होता रहता है। आत्मा का स्वभाव जानना होने से जानता तो है लेकिन क्षयोपशम ज्ञान के कारण बहुत थोड़ा जान पाता है। अत: अन्य ज्ञेयों को जानने संबंधी आकुलता निरन्तर बनी रहती है, फलत: दुःखी रहता है। आत्मस्वरूप में अपनापन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001864
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2000
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size8 MB
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