________________
नयज्ञान
भावकर्मों से भी वृत्ति समेटकर आत्मसन्मुख करना भावकर्मों से छुटकारा कैसे मिले ? भावकर्म उत्पन्न कैसे होते हैं ?
भावकर्मों के साथ द्रव्यकर्मों का निमित्त नैमित्तिकपना
भावकर्मों का कर्त्ता नहीं मानने से स्वछन्दता का भय
पर्याय से अपनापना कैसे छूटे ?
निष्कर्ष
आत्मा अपनी ही पर्याय को पर कैसे माने ?
उपसंहार
नयज्ञान व उसकी उपयोगिता
ज्ञानी बनने के लिये नयज्ञान की उपयोगिता
नयज्ञान द्वारा आत्मा को समझने की पद्धति
निष्कर्ष
नय एवं दृष्टि का अन्तर
द्रव्यदृष्टि एवं द्रव्यार्थिकनय का अन्तर पर्यायदृष्टि एवं पर्यायार्थिकनय का अन्तर
ज्ञानी को पर्यायार्थिकनय होती है, पर्यायदृष्टि नहीं
दृष्टि का कार्य क्या ?
आत्मा अरहन्त जैसा ज्ञान में कैसे आता है ?
पर्याय की असमानता अरहंतपने की श्रद्धा में बाधक नहीं ?
पर्याय स्वभाव
स्वच्छंदता के भय का निराकरण
पुरुषार्थहीनता के भय का निराकरण पुरुषार्थ की परिभाषा
अनुभूति में इन्द्रियज्ञान बाधक कैसे ?
इन्द्रियज्ञान एवं अतिन्द्रियज्ञान
अज्ञानी का ज्ञान राग एवं कर्ताबुद्धि का उत्पादक
मनजन्य ज्ञान आत्मा का प्रबल घातक
ज्ञाताबुद्धि एवं कर्ताबुद्धि का अंतर कर्तापने की परिभाषाएं व विपरीतता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
५५
५८
५९
६१
६३
६४
६५
६६
६८
६९ से ७२
६९
69 206
७०
७१
७२
७३ से ८४
७३
७४
७५
७६
७८
७९
७९
८१
८४
८४
८५ से ९५
८५
८६
८९
९१
९१
www.jainelibrary.org