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________________ १० ) ( सुखी होने का उपाय भाग - ३ पुस्तक में है । द्रव्यदृष्टि के विषयभूत निज आत्मतत्व, ध्रुवांश में अहंपना स्थापना के द्वारा, कर्तृत्वबुद्धि का अभाव कर, पर्यायार्थिकनय के विषयों के प्रति, परपना स्थापन कर उपेक्षाभाव जाग्रत करने की समस्त प्रक्रिया का वर्णन भी इसमें किया गया है। इन्हीं विषयों में इन्द्रियज्ञान का हेयपना तथा अतीन्द्रियज्ञान का उपादेयपना आदि विषयों पर भी चर्चा की गई है । इस समस्त कथन के माध्यम से यथार्थ मार्ग की यथार्थ समझ प्राप्त कर, अकाट्य निर्णय के द्वारा अपनी श्रद्धा में, मार्ग के प्रति निःशंकता प्रगट करना ही उद्देश्य है । क्योंकि निःशंक यथार्थ निर्णय उत्पन्न हुए बिना किसी भी मार्ग का अनुसरण करना संभव नहीं हो सकता । अतः आत्मार्थी को इस पुस्तक के विषय को गंभीर चिंतन मनन द्वारा, सत् समागम द्वारा, एवं युक्ति आगम अनुमांन एवं अपने अनुभव के द्वारा समझ कर, वीतरागता की कसौटी पर परखकर, श्रद्धा में नि:शंक होकर यथार्थ श्रद्धा प्रगट करना चाहिये । यही मात्र इस मनुष्य जीवन की सार्थकता है । " उपर्युक्त विषय पर यथार्थ चिन्तन मनन उस ही व्यक्ति को चल सकना संभव है: जिसको संसार, देह, भोगों से विरक्ति उत्पन्न हुई हो । यथार्थ मार्ग प्राप्त नहीं होने के कारण, अनादिकाल के संसार भ्रमण से त्रसित हुआ हो । तथा वर्तमान में प्राप्त मनुष्य जीवन को सत्समागम एवं जिनवाणी के शरण में ही बनाये रखने का अभिप्राय हो तथा रुचि का वेग संसार के आकर्षणों से हटकर आत्मीक शांति प्राप्त करने के लिये तड़पता हो । वर्तमान में दुर्लभातिदुर्लभ अवसर प्राप्त हो जाने पर, उसकी दुर्लभता श्रद्धा में प्रगट हुई हो ऐसा अवसर खो देने पर, यह अवसर अनंतकाल तक मिल सकने की असंभवता लगती हो। ऐसे आत्मार्थी जीव को ही आत्म कल्याण प्राप्त करने का यथार्थ मार्ग समझने का पुरुषार्थ जाग्रत होता है और वह ही निश्चय से यथार्थ मार्ग प्राप्त कर आगे बढ़ता हुआ आत्मानुभूति प्राप्त कर कृतकृत्य हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001864
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2000
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size8 MB
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