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________________ १०४) ( सुखी होने का उपाय भाग-३ मोक्षमार्ग दो मानने का निषेध निश्चय-व्यवहार का यथार्थ स्वरूप नहीं समझने वाले अज्ञानी जीव मोक्षमार्ग ही दो मानते हैं, जैसे निश्चय मोक्षमार्ग से तो मुक्ति होती ही है लेकिन व्यवहार भी मोक्षमार्ग है, उससे भी परम्परा से मुक्ति होती है, ऐसी मान्यतावाले जीवों के लिये पण्डित टोडरमलजी साहब ने पृष्ठ २४८-२४९ में निम्नप्रकार स्पष्टीकरण किया है - ___“अंतरंग में आपने तो निर्धार करके यथावत् निश्चय व्यवहार मोक्षमार्ग को पहिचाना नहीं, जिन आज्ञा मान कर निश्चय-व्यवहाररूप मोक्षमार्ग दो प्रकार मानते हैं। सो मोक्षमार्ग दो नहीं है, मोक्षमार्ग का निरूपण दो प्रकार है, जहां सच्चे मोक्षमार्ग को मोक्षमार्ग निरूपित किया जाय सो “निश्चय मोक्षमार्ग" है और जहाँ जो मोक्षमार्ग तो है नहीं, परन्तु मोक्षमार्ग का निमित्त है, व सहचारी है उसे उपचार से मोक्षमार्ग कहा जाय सो “व्यवहार मोक्षमार्ग” है। क्योंकि निश्चय-व्यवहार का सर्वत्र ऐसा ही लक्षण है। सच्चा निरूपण सो निश्चय, उपचार निरूपण सो व्यवहार इसलिये निरूपण अपेक्षा दो प्रकार मोक्षमार्ग जानना। (किन्तु) एक निश्चय मोक्षमार्ग है, एक व्यवहार मोक्षमार्ग है- इस प्रकार दो मोक्षमार्ग मानना मिथ्या है।" आगे पृष्ठ २५० में भी निम्नप्रकार कहा है - “तथा व्रत, तप आदि मोक्षमार्ग है नहीं, निमित्तादिक की अपेक्षा उपचार से इनको मोक्षमार्ग कहते हैं, इसलिये इन्हें व्यवहार कहा है, इस प्रकार भूतार्थ-अभूतार्थ मोक्षमार्ग पने से इनको निश्चय व्यवहार कहा है, सो ऐसा ही मानना । परन्तु यह दोनों ही सच्चे मोक्षमार्ग है, इन दोनों को उपादेय मानना वह तो मिथ्याबुद्धि ही है।" परिणति ( परिणमन) नय नहीं है उक्त ग्रन्थ के पृष्ठ २५० पर कहा है कि - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001864
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2000
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size8 MB
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