________________
अपनी बात प्रस्तुत पुस्तक "सुखी होने का उपाय" भाग-2 है। इसके पूर्व प्रथम भाग सन् 1990 में प्रकाशित हो चुका था। उस समय संपूर्ण विषय 3 भागों में संकलित कर प्रकाशन कराने का संकल्प था, लेकिन विषय की महत्ता एवं गंभीरता को दृष्टिगत करते हये अब 4 भागों में विभक्त कर प्रकाशन कराने का निर्णय लिया है। तीसरे भाग का विषय होगा "आत्मज्ञता प्राप्त करने का उपाय यथार्थ निर्णय ही है।" चतुर्थ भाग का विषय रहेगा "यथार्थ निर्णय के द्वारा ही सविकल्प एवं निर्विकल्प आत्मानुभूति।"
मैंने ये सभी रचनाएँ मात्र अपने उपयोग को सूक्ष्म एवं एकाग्र कर जिनवाणी में ही रमाये रखने की दृष्टि से की है। इसी कारण इनके सभी प्रकरणों की रचना अलग-अलग समय पर, जब-जब अपना उपयोग खाली हो सका टुकड़ों-टुकड़ों में की गई है। फलतः इसमें पुनरावृत्ति बहत हई है। भाषा साहित्य का ज्ञान नहीं होने से वाक्य विन्यास भी ठीक नहीं है तथा वाक्यों का जोड़-तोड़ भी सही नहीं है। अतः पाठकगण को इस दृष्टि से इसमें बहुत कमी लगेगी तथा पढ़ने में भी संभव है रुचिकर नहीं हो? लेकिन अध्यात्म के कथन तो भावना दृढ़ करने के लिये होते हैं, अतः उसमें पुनरावृत्ति दोष नहीं गिना जाना चाहिये। इसके अतिरिक्त भी अन्य कमियों को गौण करते हुये पाठकगण इस पुस्तक द्वारा प्रस्तुत विषय पर लक्ष्य रखते हुये अध्ययन करेंगे तो मैं मेरा श्रम सार्थक सममूंगा।
उपरोक्त पुस्तक के प्रथम भाग में, छह द्रव्यों के अनंतानंत द्रव्यों की भीड़-भाड़ में खोई हुई हमारी स्वयं की निज आत्मा को, अनेक उपायों के द्वारा भिन्नता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org