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________________ सुखी होने का उपाय) (50 की खोज करने की उग्र जिज्ञासा जाग्रत होनी चाहिए । उग्र जिज्ञासा प्राप्त खोजक जीव, सर्वप्रथम तो जिसने अपने स्वज्ञेय का प्रत्यक्ष परिचय प्राप्त किया हो, ऐसे ज्ञानी पुरुष का समागम प्राप्त करने की चेष्टा करता है, क्योंकि जिसने प्रत्यक्ष परिचय किया हो वह सच्चा - सही व सुगम मार्ग बता सकेगा। उसके बताये मार्ग को समझकर पूर्ण समर्पण भाव के साथ श्रद्धा में प्रगट करने का अभ्यास करेगा। ज्ञानी पुरुष के अभाव में जिसमें वह मार्ग बताया गया हो ऐसे साहित्य अर्थात् जिनवाणी का आश्रय लेकर उसमें से मार्ग समझने की उग्र जिज्ञासा के साथ खोजने का प्रयत्न करेगा । उस अध्ययन में आये हुए मार्ग को जबतक भले प्रकार समझ में नहीं आवे, उसको पूरे प्रयत्न के साथ समझने के लिए बार-बार विचार-मंथन - चिन्तन करेगा। 'उसमें आई हुई अपेक्षाओं को समझने के लिए विशेषज्ञों से सम्पर्क करेगा। उनके बताये हुये मार्ग पर भी विचार- चिन्तन-मनन द्वारा उसकी भी सत्यता की परीक्षा करके हृदयंगम करने की पूरी चेष्टा करेगा। कदाचित् विशेषज्ञों का भी समागम प्राप्त नहीं हो सके तो साधर्मी खोजक पुरुषों के साथ चर्चा करे कि जो जिनवाणी का कथन उसने समझा है वह किस अपेक्षा का कथन समझा है, उसके द्वारा परिणति में वीतरागता उत्पन्न होगी ऐसा इसके मंथन से समझ में आता है, आदि-आदि । आपसी चर्चा से कोई नये तथ्य की सत्यता जानने में आवे तो उस पर भी गंभीरता से विचार करके सत्य मार्ग को खोज लेता है। सबका तात्पर्य एकमात्र वीतरागता है, समस्त विचार-मंथन का निष्कर्ष, जिस मार्ग से परिणति में वीतरागता की उत्पत्ति होती जाने उस ही मार्ग को सत्य मानकर निःशंक Jain Education International For Private & Personal Use Only f www.jainelibrary.org
SR No.001863
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size6 MB
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