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सुखी होने का उपाय) के निवास तक पहुंचना था, उन सबके जानने के समय ही श्रद्धा में यह स्पष्ट था कि इन सबका कोई उपयोग नहीं है। _इसीप्रकार स्व आत्मा रूपी स्वज्ञेय तत्त्व को समझने के लिए उपयोगी, अन्य ज्ञेय तत्त्वों को मात्र आत्मा को समझने के लिए जितना व जिन-जिन को समझना आवश्यक हो उनको ही उतना ही समझना है अर्थात् उन सबका ऐसा ही जानना पर्याप्त है, जैसा कि दष्टान्तान्तर्गत व्यक्ति को निवास तक पहुंचने के लिए गली, मोहल्ला, नामांकित चौराहा, स्थान, व्यक्ति आदि को जानकर उस गली के अनेक मकानों को जानना पड़ जाता है, उन सबको जानते हुए भी अन्दर श्रद्धा में उनके प्रति परपना होने से उनकी विशेष जानकारी प्राप्त करने के लिए एक क्षण भी नहीं रुकता है, जैसे यह मकान बहुत अच्छा बना हुआ है, यह कितना बड़ा है? इसमें कितने कमरे है, इसका स्वामी कौन है? कैसा है, कितने व्यक्ति निवास करते हैं। आदि-आदि, विगत जानने के लिए क्या अपना एकक्षण भी देना चाहता है? बल्कि अगर हमारी कोई साथी उपर्युक्त जानकारी प्राप्त करने की चेष्टा भी करने लगेगा तो हम उसको मूर्ख समझेंगे और आगे बढ़ जावेंगे। गंभीरता से विचार किया जावे तो यथार्थतः तो उन सबके जानते समय भी, यह समझते हुए भी कि उपर्युक्त सब बातों की जानकारी के बिना मेरे स्वजन को निवास नहीं मिल सकता, अतः उपर्युक्त सभी बातों को मनोयोगपूर्वक पूरा-पूरा श्रम करके समझता है, लेकिन अन्दर श्रद्धा में सुनते समय भी जानते समय भी, समझते समय भी एवं उन स्थानो पर पहँच जाने पर भी उन सबके प्रति "परपना' होने से अत्यन्त हेयभाव अर्थात् उन सबको छोड़ने के भावसहित ही जानता
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