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________________ 39) (सुखी होने का उपाय हैं। यद्यपि कषाय करना बुरा ही है, तथापि सर्वकषाय न छूटते जानकर जितने कषाय घटें उतना ही भला होगा; ऐसा प्रयोजन वहाँ जानना । " पृष्ठ २८२ बुद्धिगोचर स्थूलपने सहित उपदेश देते अपेक्षा नहीं देते। है।" द्रव्यानुयोग पृष्ठ २८४- "जीवों के जीवादि द्रव्यों का यथार्थ श्रद्धान जिसप्रकार हो उसप्रकार विशेष, युक्ति, हेतु, दृष्टान्तादिक का यहाँ निरूपण करते हैं, क्योंकि इसमें यथार्थ श्रद्धान करने का प्रयोजन है। " :―― " तथा चरणानुयोग में छद्मस्य की की अपेक्षा से लोक प्रवृत्ति की मुख्यता हैं, परन्तु केवलज्ञानगोचर सूक्ष्मपने की क्योंकि यहाँ आचरण करने का प्रयोजन पृष्ठ २८४ "तथा यहां मोक्षमार्ग का श्रद्धान कराने | के अर्थ जीवादि तत्त्वों का विशेष, युक्ति, हेतु, दृष्टान्तादि द्वारा निरूपण करते हैं। वहां स्वपर भेदविज्ञानादिक जिस प्रकार हों उसप्रकार जीव अजीव का निर्णय करते हैं, तथा वीतरागभाव जिसप्रकार हो, उसप्रकार आस्रवादिक का स्वरूप बतलाते हैं, और वहां मुख्यरूप से ज्ञान-वैराग्य के कारण जो आत्मानुभवनादिक उनकी महिमा गाते हैं। " पृष्ठ २८४ " तथा द्रव्यानुयोग में निश्चय अध्यात्म उपदेश की प्रधानता हो, वहां व्यवहार धर्म का भी निषेध करते हैं। जो जीव आत्मानुभव का उपाय नहीं करते और बाह्य क्रियाकाण्ड में मग्न हैं। उनको वहां से उदास करके आत्मानुभवानादिक में लगाने को व्रतशील संयमादिक का हीनपना प्रगट करते है। वहां ऐसा नहीं जान लेना कि इनको छोड़कर पाप में लगना, क्योंकि उस उपदेश का प्रयोजन अशुभ में लगाने का नहीं है, शुद्धोपयोग में लगाने को शुभोपयोग का निषेध करते है। Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001863
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size6 MB
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