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________________ सुखी होने का उपाय) निर्णय करना आवश्यक क्यों ? " अध्ययन के पश्चात् भी निर्णय करने पर इतना बल क्यों दिया गया है ? ऐसी शंका का समाधान भी आवश्यक है। लौकिक में भी यह स्पष्ट है कि किसी भी अध्ययनरत विद्यार्थी को जो विधि उसने अध्ययन के द्वारा सीखी है, उसके संबंध में ऐसा निर्णय हुए बिना कि त यह विधि ही यथार्थ है, इस ही विधि का परीक्षा के समय उपयोग करके मैं उत्तीर्णता प्राप्त करूँगा ऐसी विधि के बिना वह विद्यार्थी उस विधि का उपयोग निःशंकतापूर्वक नहीं कर सकेगा फलस्वरूप उत्तीर्णता भी प्राप्त नहीं कर सकेगा। इसीप्रकार मोक्षमार्ग का उपदेश प्राप्त कर भी अगर वह दृढ़ता के साथ इस निर्णय पर नेहीं पहुँचेगा कि यही मार्ग सत्यार्थ है, तबतक वह उस मार्ग का निःशंक होकर अनुसरण नहीं कर सकेगा फलस्वरूप वीतरागता का उत्पादन नहीं कर सकेगा। अतः दृढ़तम निर्णय होना आवश्यक है। निम्नप्रकार विविध ग्रन्थों में भी विविध आचार्यों ने निर्णय को अत्यन्त आवश्यक बताया है। (20 मोक्षमार्ग प्रकाशक ग्रन्थ के नौवें अधिकार में पेज ३११ पर निम्न शब्दों में कहा है कि "तत्त्वनिर्णय करने में उपयोग न लगावें, वह तो इसी का दोष है, तथा पुरुषार्थ से तत्त्वनिर्णय में उपयोग लगाये तब स्वयमेव ही मोह का अभाव होने पर सम्यक्त्वादि रूप मोक्ष के उपाय का पुरुषार्थ बनता है। इसलिये मुख्यता से तो तत्त्वनिर्णय में उपयोग लगाने का पुरुषार्थ करना।" पृष्ठ ३१२ में भी कहा है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001863
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size6 MB
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