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________________ 17) (सुखी होने का उपाय इसलिये शास्त्र का सम्यक् प्रकार से अध्ययन करना चाहिए। गाथा २३२ में भी कहा है कि - एयग्गगदो समणो एयग्गं णिच्छिदस्स अत्थेसु। णिच्छित्ती आगमदो आगमचेट्ठा तदो जेट्ठा ॥ अर्थ:- श्रमण एकाग्रता को प्राप्त होता है, एकाग्रता पदार्थों के निश्चयवान् के होती है, निश्चय आगम द्वारा होता है, इसलिये आगम में व्यापार मुख्य है। तथा गाथा २३४ की टीका में साधु परमेष्ठी को भी आगमचक्षु कहते हुए कहा है कि - "अब, उस (सर्वतः चक्षुपने) की सिद्धि के लिये भगवंत श्रमण आगमचक्षु होते हैं। यद्यपि ज्ञेय और ज्ञान का पारस्परिक मिलन हो जाने से उन्हें भिन्न करना अशक्य है (अर्थात् ज्ञेय ज्ञान में ज्ञात न हों ऐसा करना अशक्य है) तथापि वे उस आगमचक्षु से स्वपर का विभाग करके, महामोह को जिनने भेद डाला है, ऐसे वर्तते हुए परमात्मा को पाकर, सतत ज्ञाननिष्ठ ही रहते इसप्रकार आगम-अभ्यास की अपार महिमा है। ज्ञानी के अभाव में भी आगम के अभ्यास द्वारा भी यथार्थ निर्णय प्राप्त होता है। ऐसा विश्वास जाग्रत कर। जिसप्रकार भी संभव हो यथार्थ देशना प्राप्त कर, उसको अध्ययन आदि के द्वारा ग्रहण करना चाहिए अर्थात् बुद्धिगम्य होकर यथार्थ निर्णय होना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001863
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size6 MB
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