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________________ 151 (सुखी होने का उपाय मात्र सुनने से यथार्थता प्रमाणित नहीं होती, जैसे मिश्री का स्वाद नहीं चखने वाले एक पुरुष ने मिश्री के स्वरूप को निष्णात व्यक्ति के द्वारा गहराई से समझा हो, और दूसरे पुरुष ने प्रत्यक्ष स्वाद लिया हो, लेकिन स्वरूप समझने की चेष्टा भी नहीं की हो, उनमें से आप विचार करें मिश्री संबंधी वर्णन किसका यथार्थ होगा ? स्वाद चखनेवाले के वर्णन में ही यथार्थता हो सकती है। इसीप्रकार ज्ञानी की देशना में ही यथार्थता आ सकती है, साथ ही इतनी बात अवश्य है कि ज्ञानी गुरू के द्वारा अगर एक बार यथार्थ देशना प्राप्त कर ली हो और वह विस्मरण हो जावे तो अज्ञानी गुरू के माध्यम से भी यथार्थ उपदेश प्राप्त हो अथवा जिनवाणी (द्रव्यश्रुत) के अध्ययन से यथार्थ मार्ग प्राप्त किया हो, तो वह सत्यार्थ देशना स्मृति में प्रगट हो सकती है। अतः इस अपेक्षा उस सत्यार्थ उपदेश को भी निमित्त कह दिया जाता है। नियमसार ग्रन्थ की गाथा ५३ में कहा भी है कि : सम्मत्तस्स णिमित्तं जिणसुत्तं तस्य जाणया पुरिसा। अन्तरहऊ मणिदां दसणमोहस्स खयपहुदी ॥ अर्थः- सम्यक्त्व का निमित्त जिनसूत्र है, जिनसूत्र के जाननेवाले पुरुषों को सम्यक्त्व के अंतरंग हेतु (निमित्त) कहे हैं क्योंकि उनको दर्शनमोह के क्षयादिक है ॥ ज्ञानी पुरूष के अभाव में यथार्थ निर्णय कैसे हो ? उपरोक्त कथन से एक गंभीर समस्या उत्पन्न होती है कि वर्तमान काल में ज्ञानी पुरुष का समागम तो दुर्लभ है, अतः मोक्षमार्ग का यथार्थ निर्णय कैसे किया जावे? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001863
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size6 MB
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