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सुखी होने का उपाय) क्षण-क्षण में ले रहे हैं। उन्होंने भी अपने ज्ञान में मार्ग तथा मार्ग के फल को प्रत्यक्ष कर लिया है। अतः वे भी यथार्थ मार्गप्रदाता हैं।
जघन्य उपदेशक आत्मानुभवी सम्यग्दृष्टि ज्ञानी पुरुष हैं, जिनने मार्ग को समझकर, उसकी साधना के द्वारा मार्ग के फल रूप आत्मा की शान्ति का प्रत्यक्ष अनुभव कर लिया है। ऐसे ज्ञानी पुरुष द्वारा भी बताया गया मार्ग सत्यार्थ होता है, क्योंकि उन्होंने स्वयं उसकी सत्यता को अनुभव द्वारा प्रमाणित कर लिया है।
दिव्यध्वनि के द्वारा जो यथार्थ मार्ग प्रकाशित हुआ था, वही परंपरा से ज्ञानी महापुरुषों के द्वारा लिपिबद्ध होकर द्रव्यश्रुत (शास्त्र) के रूप में हमें उपलब्ध है। उसको भी परंपरापूर्वक व्यवहार से देशना का कारण कहा गया है। लेकिन वह द्रव्यश्रुत उस ही आत्मार्थी जीव को परंपरा कारण बनेगा, जिसने एकबार ज्ञानी गुरू के द्वारा उस द्रव्यश्रुत के अध्ययन करने के लिए दृष्टि प्राप्त कर ली हो। कारण यथार्थ मार्ग का उपदेश गुथित होने पर भी द्रव्यश्रुत में मोक्षमार्ग के अनेक विषयों का भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं के द्वारा भिन्न-भिन्न स्थानों पर विवेचन किया हुआ होता है। शास्त्र स्वयं तो वह दृष्टिकोण (अपेक्षा) स्पष्ट कर नहीं सकता, अतः जिसने ज्ञानी गुरू से उन अपेक्षाओं को समझने की दृष्टि प्राप्त कर ली हो, ऐसे आत्मार्थी जीव को ज्ञानी के द्वारा प्राप्त देशना जिनवाणी के माध्यम से पुनः जाग्रत हो जाती है और उसको जिनवाणी (शास्त्र) का अध्ययन भी कारण कह दिया जाता है, लेकिन अज्ञानी गुरू के द्वारा प्रथम देशना के द्वारा आत्मोपलब्धि नहीं होती, क्योंकि उसने उस मार्ग को प्रत्यक्ष देखा नहीं है अर्थात् उसके ज्ञान में प्रत्यक्ष नहीं हुआ है।
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