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________________ सुखी होने का उपाय) (8 करने का उपाय बताया गया हो। उस उपदेश का विस्तार सारी द्वादशांग वाणी है। ऐसी देशना को सुनकर, प्राप्तकर उसका धारण हो अर्थात् अपने ज्ञान में ऐसा ग्रहण हो, जिससे आत्मा में संस्कार पड़ें तथा कालान्तर में उसका विस्मरण भी न हो, उस पर विचार, मनन, चिन्तन आदि अनेक ऊहापोहों आदि के माध्यम से अपने अंतरंग में पक्का निर्णय होकर भावभासन हो जावे। उस सारी प्रक्रिया का नाम देशनालब्धि है, शास्त्र में भी देशना के ५ भेद कहे हैं:(१) श्रवण, (२) ग्रहण, (३) धारण, (४) निर्धारण, (५) परिणमन। इसप्रकार देशनालब्धि का विस्तार, निर्णय होकर परिणमन होने तक है। मात्र सुन लेने का नाम ही देशनालब्धि नहीं है। उस संपूर्ण प्रक्रिया पर विस्तार से चर्चा इस भाग में आगे करेंगे। ४. प्रायोग्यलब्धि पूर्वकथित तीनों लब्धियों को प्राप्त जीव, जब देशनालब्धि से प्राप्त, आत्मा की शांति प्राप्त करने के उपायों को अर्थात् मोक्षमार्ग को समझ लेता है, तब उस मार्ग का प्रयोग अपने आत्मपरिणामों में करने के लिये तत्पर होता है। जिन कारणों से आत्मा का उपयोग अपने ज्ञायक अकर्ता स्वभावी अपने आत्मा अर्थात् ज्ञान को छोड़कर अन्य द्रव्यों में अर्थात् परज्ञेयों में दौड़ता-भागता फिरता है, इससे आकुलित हो-होकर दुःखी होता रहता है। उन कारणों को और उन को दूर करने के उपायों को भी जिसने उपदेश के द्वारा समझ लिया है, तथा अपने अकर्ता स्वभावी ज्ञायक आत्मा के स्वरूप को भी देशना के द्वारा यथार्थ समझकर विकल्पात्मक ज्ञान के द्वारा उसमें अपनापन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001863
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size6 MB
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