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________________ (सुखी होने का उपाय अपनी उस बुद्धि का उपयोग आत्मा का (अपना) धर्म समझने में करें तो मात्र ऐसे ही जीव धर्म प्रगट करने की पात्रता के योग्य होते हैं। ऐसे जीवों की पात्रता की प्रगटता किस प्रकार से होती है, उसका वर्णन जिनवाणी में पाँच लब्धियों के माध्यम से किया गया है। वह समझना चाहिए। मोक्षमार्ग का पुरुषार्थ करनेवाले जीव को निम्न पाँच लब्धियाँ होती ही हैं। वे हैं-क्षयोपशम, विशुद्धि, देशना, प्रायोग्य एवं करण। इनका स्वरूप मोक्षमार्ग प्रकाशक के सातवें अधिकार के पाँच लब्धियों के प्रकरण में निम्न प्रकार किया है: क्षयोपशमलब्धि :- जिसके होने पर तत्त्वविचार हो सके, ऐसा ज्ञानावरणादि कर्मों के क्षयोपशम का होना। विशुद्धिलब्धि :- मोह का मन्द उदय आने से मन्दकषाय रूप भाव हो, जिससे तत्त्वविचार हो सके। देशनालब्धि :- जिनदेव के उपदिष्ट तत्त्व का धारण हो, विचार हो। प्रायोग्यलब्धि :- सम्यग्यदर्शन प्राप्त होने योग्य परिणामों की अवस्था का होना। करणलब्धि :- जिसके उपरोक्त चार लब्धियाँ तो हुई हों और अन्तर्मुहर्त पश्चात् जिसको सम्यक्त्व होना हो, उसी जीव के करणलब्धि होती है। १. क्षयोपशमलब्धि समझने की योग्यतावाला ज्ञान का क्षयोपशम (प्रगटता) तो हर एक सैनी पंचेन्द्रिय जीव को होती ही है, लेकिन जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001863
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size6 MB
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