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सुखी होने का उपाय)
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अतः हमको तो ऐसा संक्षिप्त साररूप धर्म का मार्ग चाहिए जिससे हम इस भव में ही अर्थात् वर्तमान पर्याय में ही अपना कल्याण कर सकें। यह बात असंभव भी नहीं है। शास्त्र में कहा हैं कि तिर्यच गति का जीव भी सम्यग्दर्शन प्रगट कर सकता है। अतः हम तो मनुष्य है ! निश्चित रूप से इस भव में धर्म प्रगट करेंगे ही, क्योंकि यह भव चला जाने के बाद, न जाने ऐसा अवसर प्राप्त भी होगा या नहीं, अतः मुझे तो अवश्य ही धर्म प्रगट करना है। ऐसे संकल्प के साथ जो धर्म समझने का पुरुषार्थ करेगा ऐसे जीव को धर्मप्राप्ति करने का सरल एवं संक्षिप्त मार्ग इस पुस्तक में वर्णन करने का प्रयास किया गया है।
इसप्रकार आत्मार्थी जीव को पूर्ण
संकल्प, तीव्र रुचि एवं लगन के साथ अपने कल्याण के लिए, धर्म का स्वरूप एवं उसके प्राप्त करने की विधि समझकर अपने आत्मा में प्रगट करना चाहिए। इस ही में इस मनुष्य जीवन की सफलता है।
धर्म प्रगट करने का पात्र जीव एवं पांच लब्धियाँ
आत्मार्थी जीव को धर्म प्रगट करने की पात्रता का विवेचन आगम में पाँच लब्धियों के माध्यम से किया गया है। इस लोक में अनंत जीव द्रव्य हैं। उनमें से सैनी पंचेन्द्रिय जीव के अतिरिक्त अन्य को तो धर्म प्रगट करने की योग्यता ही नहीं है। सैनी पंचेन्द्रिय जीवों में भी परिपक्व बुद्धि हो, जो कि मनुष्य को आठ वर्ष की उम्र के बाद होती है, ऐसी परिपक्व बुद्धिवाले जीव ही अगर
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