________________ सुखी होने का उपाय) (110 नहीं करती, इसलिये उसको भी उपचार से मोक्षमार्ग कहा गया है, वह व्यवहार मोक्षमार्ग है। इसका नय के साथ संबंध नहीं है। नय का कार्य मात्र जानने का है। अतः यथार्थ को यथार्थ जाने व कहे वह निश्चयनय है और जो यथार्थ में जैसा कहा गया हो वैसा न हो तो भी, उसको किसी अपेक्षा से यथार्थ के रूप में कहा जाय व जाना जाय, सो व्यवहारनय है। जैसे वीतराग परिणति को मोक्षमार्ग जानना व कहना व्यवहारनय है। इसप्रकार निश्चय-व्यवहारनय एवं निश्चय-व्यवहार मोक्षमार्ग का अंतर समझकर यथायोग्य ज्ञान-श्रद्धान कर वर्तना आवश्यक है। __ अनेकांत और स्याद्वाद वस्तु का स्वरूप ही अनेकान्तात्मक है। अनेकांत शब्द ही अनेक और अन्त दो शब्दों से मिल कर बना है। अनेक अर्थात् एक से अधिक, दो से लगाकर अनन्त, और अन्त का अर्थ है गुण-धर्म आदि। हर एक वस्तु अनन्त गुणों का समुदाय रूप एक वस्तु है। अतः वस्तु स्वयं अनेकांतात्मक ही है। उसको समझानेवाली कथन पद्धति को अनेकान्तवाद अथवा स्याद्वाद कहा जाता है। अनेकान्तस्वरूप वस्तु को समझानेवाली होने से उसको अनेकांतवाद कहा जाता है। तथा गुण अनंत होने से किसी एक गुण के माध्यम से वस्तु को समझाना पड़ता है। उस समय अन्य गुण वक्ता की दृष्टि में रहते हुए भी उनका कथन नहीं किया जा सकता। इसलिये स्यात् पद लगाकर ही अथवा ज्ञान में रखकर ही समझाना पड़ता है। अतः उस कथन पद्धति को स्याद्वाद कहा जाता है। इस ही कारण अनेकांत और स्याद्वाद में द्योत्य-द्योतक संबंध है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org