________________ सुखी होने का उपाय) (108 है। इनके भी उपचरित-अनुपचरित आदि अनेक भेद पड़ते है। उनकी विस्तृत जानकारी "परमभावप्रकाशक नयचक्र" से प्राप्त करें। निश्चय-व्यवहारनय में मोक्षमार्ग मुख्य प्रयोजनभूत विषय है। इनका सम्यक प्रकार से उपयोग किये बिना कभी मोक्षमार्ग प्रारंभ भी नहीं हो सकता। अतः इन नयों के संबंध में विस्तार से चर्चा भाग-३ में की गई है। आत्मार्थी जीव को उसका अध्ययन करना प्रयोजनभूत है। निश्चय-व्यवहारनय एवं निश्चय-व्यवहार मोक्षमार्ग में अंतर उपरोक्त दोनों के अंतर को मोक्षमार्ग के लिये समझना बहुत आवश्यक है। क्योंकि नय तो ज्ञान की पर्याय है, उसका कार्य तो मात्र जानना ही है। मोक्षमार्ग तो श्रद्धा एवं चारित्रगुण की पर्याय है, श्रद्धा का कार्य है "अहंपना" स्थापन करना और चारित्रगुण का कार्य है श्रद्धा ने जिसको स्व मान लिया उस ही में तन्मय होना। अतः निश्चय-व्यवहारनय से निश्चय-व्यवहार मोक्षमार्ग अलग ही निश्चय मोक्षमार्ग एवं व्यवहार मोक्षमार्ग तो द्रव्य की परिणति है। उस परिणति को जानना वह ज्ञान का कार्य है। मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ 250 पर कहा है कि - "प्रवृत्ति में नय का प्रयोजन ही नहीं है। प्रवृत्ति तो द्रव्य की परिणति है। वहाँ जिस द्रव्य की परिणति हो उसको उसी की प्ररूपित करे सो निश्चयनय, और उस ही को अन्य द्रव्य की निरूपण करे सो व्यवहारनय है ऐसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org