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________________ सुखी होने का उपाय) " "शब्द, अर्थ, अरू ज्ञान, समय त्रय आगम गाये ।' शब्दनय, ज्ञाननय तथा अर्थनय (पदार्थनय) से भी नय के ३ भेद कहे हैं। कथन को शब्दनय, ज्ञान जिसको विषय बनावे, वह पदार्थ अर्थनय तथा विषय करनेवाले ज्ञान को ज्ञाननय कहते है। तीनों के स्वामी अलग-अलग हैं। उपरोक्त कथनों से स्पष्ट हो जाता है कि वस्तुस्वभाव समझने के लिये उपरोक्त पद्धति समझना आवश्यक है, क्योंकि हर एक वस्तु अपने-अपने स्वभाववाली तथा एकसाथ ही सामान्य-विशेषात्मक, अनंत गुणों के समुदायरूप है। उनमें से स्वपर के रूप में विभागीकरण करने के लिये नयज्ञान अत्यन्त आवश्यक है। (98 आगमशैली एवं अध्यात्मशैली उपरोक्त नयों का प्रयोग जिनवाणी में भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से अपेक्षाओं से किया गया है। इन दोनों ही अपेक्षाओं का प्रयोजन तो एकमात्र स्व-पर की मुख्यता से भेदज्ञान कराना है। आगम में छह द्रव्यों की मुख्यता से और अध्यात्मरूप परमागम में आत्मद्रव्य की मुख्यता से कथन होता है। आगम की शैली में वस्तुस्वरूप का प्रतिपादन मुख्य रहता है और अध्यात्मशैली में आत्मा के हित की मुख्यता रहती है। दोनों शैलियों में मूलभूत अन्तर यह है कि अध्यात्मशैली की विषयवस्तु आत्मा, आत्मा की विकारी - अविकारी पर्यायें और आत्मा से परवस्तुओं के संबंध मात्र है। आगमशैली की विषयवस्तु छहों प्रकार के समस्त द्रव्य, उनकी पर्यायें और उनके परस्पर के संबंध आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001863
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size6 MB
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