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________________ 070 (सुखी होने का उपाय प्रमाण-नय के लक्षण . वस्तु के सामान्य अंश को ग्रहण करनेवाले ज्ञान के अंश को द्रव्यार्थिकनय और विशेष अंश को ग्रहण करनेवाले ज्ञान के अंश को पर्यायार्थिकनय कहा जाता है। तथा दोनों अंशों को एक साथ ग्रहण करनेवाले ज्ञान को प्रमाण कहते परीक्षामुख के परिच्छेद ४ के सूत्र-१ में कहा भी है "सामान्यविशेषात्मा तदर्थो विषयः " अर्थ- "सामान्य विशेषात्मक पदार्थ प्रमाण का विषय है।" राजवार्तिक के अध्याय - सूत्र ३३ में नय का लक्षण । बताया है"प्रमाण प्रकाशितार्थविशेष प्ररूपको नयः।" अर्थ- "प्रमाण द्वारा प्रकाशित पदार्थ का विशेष निरूपण करनेवाला नय है।" आलापपद्धति में नय के स्वरूप को और भी स्पष्ट किया है"प्रमाणेन वस्तुसंग्रहीतार्थकांशो नयः . श्रुतविकल्पो वा ज्ञातुरभिप्रायो वा नयः। नानास्वभावेभ्यो व्यावत्य एकस्मिन् स्वभावे वस्तु नयति प्राप्यतीति वा नयः।" अर्थ-प्रमाण के द्वारा गृहीत वस्तु के एक अंश को ग्रहण करने का नाम नय है अथवा श्रुतज्ञान का विकल्प नय है अथवा ज्ञाता का अभिप्राय नय है अथवा नाना स्वभावों से वस्तु को पृथक करके जो एक स्वभाव में वस्तु को स्थापित करता है, वह नय है। स्वामी की अपेक्षा भी नय के ३ भेद कहे है। समयसार की हिन्दी टीका के मंगलाचरण में पण्डित जयचंदजी ने कहा है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001863
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size6 MB
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