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________________ जाने कहाँ-कहाँ भटकता हुआ सन् १९४३ में प्रातःस्मरणीय महान् उपकारी पूज्य श्री कानजीस्वामी का मेरे भाग्ययोग से समागम प्राप्त हो गया, कुछ वर्षों तक तो उनके भी बताये मार्ग पर भी पूर्ण निःशंकता प्राप्त नहीं हुई तब तक भी इधर-उधर भटकता रहा । अन्ततोगत्वा सबही तरह से स्थूलरूप से परीक्षा कर यह दृढ़ निश्चय हो गया कि आत्मा को शान्ति प्राप्त करने का मार्ग अगर कोई हो सकता है तो मात्र एक यही है अन्य कोई मार्ग नहीं हो सकता है ऐसे विश्वास एवं पूर्ण समर्पणता के साथ उनके सत्समागम का पूरा-पूरा लाभ उठाने का प्रयल करता रहा, फलतः जो कुछ भी मुझे प्राप्त हुआ उसमें जो कुछ भी है वह सबका सब अकेले पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामीजी का ही है, वे तो सद्ज्ञान के भण्डार थे, आत्मानुभूति प्राप्त महापुरुष थे उनकी वाणी का एक-एक शब्द गहन, गंभीर एवं सूक्ष्म रहस्यों से भरा हुआ अमृत तुल्य होता था उनमें से अगर किसी विषय के ग्रहण करने, समझने में मैंने भूल की हो और उसके कारण इस लेखमाला में भी भूल हुई हो तो वह सब मेरी बुद्धि का ही दोष है। और जो कुछ भी यथार्थ है वह सब पूज्य श्री स्वामीजी की ही देन है,उनके स्वर्गवास के पश्चात् तथा पूर्व में भी जैसे-जैसे मैं जिनवाणी का अध्ययन करता रहा हूँ उनके उपदेश का एक-एक शब्द जिनवाणी से मिलता था उससे भी उनके प्रति मेरी श्रद्धा बहुत दृढ़ हुई है । वास्तविक बात तो यह है कि जिनवाणी के अध्ययन करने के लिये दृष्टि भी पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा ही प्राप्त हुई है, अन्यथा मोक्षमार्ग के लिए हम बिल्कुल अन्धे थे अत: इस पामर प्राणी पर तो पूज्य स्वामीजी का तीर्थकर तुल्य उपकार है, जिसको यह आत्मा इस भव में तो क्या, भविष्य के भवों में भी नहीं भूल सकेगा। मेरी धर्ममाता पूज्य बहनश्री चंपाबहन तथा पूज्य शांता बहन की भी मेरे ऊपर बहुत कृपा रही है, उनका भी मेरे पर असीम उपकार है, उनके कारण मेरे जीवन में अपूर्व परिवर्तन हआ है। पूज्य गुरुदेवश्री के उपदेशों का जब-जब मेरी अन्तर्परिणति के साथ मेल बैठाता था तो अनेक उलझनें एवं शंकायें उत्पन्न होतीं थीं,ऐसी अन्तर की गुत्थी सुलझाकर मार्ग को निःशंक एवं सरल बनाने के लिए उनका मेरे ऊपर असीम उपकार है। वह भी यह आत्मा कभी भुला नहीं सकता। __इसप्रकार जो कुछ भी गुरु उपदेश से प्राप्त हुआ और अपनी स्वयं की बुद्धिरूपी कसौटी से परखकर स्वानुभव द्वारा निर्णय में प्राप्त हुआ उसी का संक्षिप्त सार अपनी सीधी सादी भाषा में प्रस्तुत करने का यह अन्तिम प्रयास है। मेरी उम्र ७६ वर्ष है और इस कृति के दो भाग शेष हैं। इस जीवनकाल में यह कृति सम्पूर्ण तैयार होकर आत्मार्थी बन्धुओं को मोक्षमार्ग प्राप्त करने का मार्ग सुगमता से प्राप्त करावे-- यही एक भावना है। इस पुस्तक का नाम रखा गया है 'सुखी होने का उपाय' जिसका अर्थ होता है- मोक्ष प्राप्त करने का उपाय, आत्मा की परम शांति प्राप्त करने का उपाय । इस पूरे विषय को तीन (VI) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001862
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size7 MB
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