________________
[६९
वस्तु स्वभाव एवं विश्व व्यवस्था । व्यवस्था को समझना चाहिए। प्रश्न खड़ा होता है, कि वस्तु व्यवस्था और विश्व व्यवस्था में क्या अन्तर है? उत्तर है कि बहुत अन्तर है।
_वस्तु व्यवस्था एवं विश्व व्यवस्था __ जगत अर्थात् विश्व में छह प्रकार की वस्तुएँ हैं, उन छहों प्रकार की वस्तुओं की संख्या अपेक्षा, अनन्त वस्तुओं के समुदाय का नाम ही विश्व है। उनमें छहों द्रव्यों ( वस्तुओं) के समुदाय स्वरूप विश्व की व्यवस्था क्या है, उसको समझना विश्व व्यवस्था को समझना है। इसीप्रकार उनमें से एक एक वस्तु की व्यवस्था को समझना वह वस्तु व्यवस्था को समझना है।
उपर्युक्त कथन को आचार्यों ने आगम एवं अध्यात्म के नाम से समझाया है। उसमें जीवद्रव्य एक वस्तु है, उसकी स्वयं एक की ही व्यवस्था को अध्यात्म कथन कहा जाता है तथा जीव के अतिरिक्त सभी द्रव्यों की व्यवस्था एवं विश्व व्यवस्था को बताने वाले कथन आगम कहे जाते हैं।
उपर्युक्त दोनों विषयों में से जीवद्रव्य सहित सभी द्रव्यों की वस्तु व्यवस्था के संबंध में तो विस्तारपूर्वक ऊपर वर्णन आ ही चुका है और उसके माध्यम से हम समझ चुके हैं कि हर वस्तु अपने स्वभावरूप ही निरन्तर निर्बाधरूप से परिणमन करती ही रहती है। यह ही हर एक वस्तु की व्यवस्था है, क्योंकि कोई भी वस्तु अगर किसी भी वस्तु में हस्तक्षेप करने लगे तो, अन्य वस्तु भी हस्तक्षेप करके उस हस्तक्षेप करने वाली वस्तु के हस्तक्षेप को रोक भी सकती है। इसप्रकार हर एक वस्तु को हस्तक्षेप करने की सामर्थ्य स्वीकार भी की जावे तो वस्तु व्यवस्था ही समाप्त हो जावेगी। अत: वस्तु स्वातंत्र्य स्वीकार करना ही वस्तु व्यवस्था स्वीकार करना है। अब विश्व व्यवस्था को समझना है।
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org