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________________ वस्तु स्वभाव एवं विश्व व्यवस्था ] [ ४१ आदि एवं पुद्गल के स्पर्श-रस आदि विशेष गुण कहे गये हैं । उन विशेष गुणों के द्वारा ही उन-उन द्रव्यों को पहिचाना जा सकता है । अत: उन गुणों को लक्षण के रूप में भी कहा गया है । लक्षण किसे कहते हैं ? 'लक्षण उसे कहते हैं- “जो लक्षण, अपने लक्ष्य में तो मिले लेकिन अन्य किसी में न मिले और वह लक्ष्य किसी भी समय उस लक्षण से अलग नहीं हो सके । ” विशेष गुण वे विशेष गुण इस प्रकार हैं, जिनको लक्षण भी कहा गया है- (१) एक जीवद्रव्य तो चेतन, बाकी पाँच द्रव्य अचेतन, (२) एक पुद्गल तो मूर्तिक एवं बाकी जीवसहित पाँचों द्रव्य अमूर्तिक, (३) जीवद्रव्य के विशेष गुण, ज्ञान-दर्शन आदि अनन्त, (४) पुद्गल द्रव्य के विशेष गुण, स्पर्श-रस-गंध-वर्ण आदि अनन्त, (५) धर्मद्रव्य का गतिमान जीव पुद्गल के गमन में निमित्तता आदि अनंत, (६) अधर्मद्रव्य, गतिमान होकर स्थिति को प्राप्त जीव पुद्गल को निमित्तता आदि अनंत, (७) आकाश, सभी द्रव्यों का अवकाश देने में निमित्तता आदि अनंत, (८) इसीप्रकार कालद्रव्य द्रव्यों के परिणमन में निमित्तता आदि अनंत । उपर्युक्त परिभाषा के आधार पर यह बहुत स्पष्ट हो जाता है कि हर एक द्रव्य के उपर्युक्त कहे हुए गुण, अपने-अपने द्रव्यों की पहिचान कराने के लिए कितने उपयोगी हैं। इन गुणों के आधार पर ही हम जगत के छह द्रव्यों के भिन्न-भिन्न अस्तित्व का निश्चय कर सकते हैं। इसप्रकार समझने पर यह स्पष्ट फलित होता है कि हर एक द्रव्य चाहे वह कोई भी एक जीवद्रव्य हो अथवा एक पुद्गल परमाणु द्रव्य हो, सभी अपनी-अपनी अनंत गुण रूपी सम्पदा से भरे हुए हैं एवं अपनी उस सम्पत्ति से भरपूर अनादि अनन्त रह रहे हैं । उन सबमें अपना-अपना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001862
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size7 MB
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