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________________ [ सुखी होने का उपाय ३८ ] किसी गुण में किसी का दखल ही नहीं हो सकता तो उस गुण की किसी समय की किसी भी पर्याय में किसी का दखल कैसे संभव हो सकता है ? इसका अर्थ यह निकलता है कि द्रव्य तो अपनी स्वयं की सत्ता निर्वाध रूप से अनादि से अनन्त काल तक बनाये हुए ही रहेगा, लेकिन उसके स्वयं के ही अंश किसी भी गुण की किसी एक पर्याय की भी सत्ता, स्वयं अपनी स्वतंत्रता से निर्वाधरूप से बनी ही रहती है। पंचाध्यायीकार ने भी इसी का समर्थन किया है : तत्व सल्लाक्षणिकं सन्मात्रं वा यतः स्वतः सिद्धं । तस्माद् अनादिनिधनं स्वसहायं निर्विकल्पं च ॥ अर्थात् तत्त्व या पदार्थ सत्लक्षण वाला है, सत् मात्र है तथा स्वतः सिद्ध है - किसी के द्वारा बनाया हुआ नहीं है इसलिए वह अनादि निधन होने से स्वसहाय स्वतंत्र है एवं निर्विकल्प (द्वेत नहीं ) है । इन सबसे सिद्ध होता है कि द्रव्य एवं गुण तो स्वतंत्र हैं ही, लेकिन हर एक द्रव्य के हर एक गुण की एक-एक पर्याय भी स्वतः सिद्ध एवं स्वसहाय है । उस पर्याय का स्वामी वह द्रव्य ही है, अन्य किसी भी द्रव्य का, उसमें किसी भी प्रकार से हस्तक्षेप संभव ही नहीं हो सकता । 1 समयसार गाथा ३ की टीका में भगवान अमृतचन्द्राचार्य ने हर एक द्रव्य की स्वतंत्रता निम्नप्रकार सिद्ध की है : —— “ समयश्ब्देनात्र सामान्येन सवा पदार्थों भिधीयते । समयत एकीभावेन स्वगुणपर्यायान् गच्छतीति निरुक्तेः । ततः सर्वत्रापि धर्माधर्माकाशकालपुद्गलजीवद्रव्यात्मनि लोकेये यावंतः केचना वेप्यर्थास्ते सर्व एवं स्वकीयद्रव्यांतर्मग्नानंतस्वधर्मचक्रयुंबिनोपि परस्परमयुंबं तोत्यंतप्रत्यासत्तावपि नित्यमेव स्वरूपादपतंत: पररूपेणापरिणमनादविनष्टानंतव्यक्ति त्वाट्टंकात्कीर्णा इव तिष्ठतः समस्तविरुद्धाकार्य हेतुतयाशश्वदेव विश्वमनुगृणंतो ।” Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001862
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size7 MB
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