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वस्तु स्वभाव एवं विश्व व्यवस्था ] कितना धैर्य एवं अन्दर में तीव्र लगन चाहिए—यह तो आप अनुमान लगा ही सकते हैं। ___ संसार के परिभ्रमण को दुःखरूप समझकर अब एक भी नया भव प्राप्त नहीं करना है- ऐसा उग्र संकल्प करना चाहिए एवं उल्टी मान्यता को बदलकर सच्चा मार्ग प्राप्त करने के लिए, मुझे सब कुछ भी बलिदान करना पड़े तो भी सर्वस्व समर्पण करके भी, यथार्थ मार्ग प्राप्त करने का उग्र पुरुषार्थ एवं संसार दुःख से भयभीतता, साथ ही आत्मा के अन्दर रहने वाले अतीन्द्रिय सुख की महत्ता आदि होना चाहिए। वह सब भी जब तक भले प्रकार सत्समागम के द्वारा समझकर आत्मा के अन्दर विश्वास में नहीं जमें और सच्चा मार्ग प्राप्त करने की तीव्र लगन ही नहीं लगे तब तक वह मिथ्या मान्यता बदल कर यथार्थ मार्ग प्राप्त करना तो दूर, रुचिपूर्वक समझ में आना भी बहुत कठिन है। श्रीमद् राजचन्द्रजी ने कहा भी है कि :
कषाय की उपशान्तता, मात्र मोक्ष अभिलाष ।
भवे खेद प्राणीदया, वहाँ आत्मार्थ निवास ।। और भी कहा है कि :
काम एक आत्मार्थ का अन्य नहीं मन-रोग। सारांश यह है कि उपरोक्त मोक्ष का मार्ग अर्थात् संसार परिभ्रमण से छूटने का उपाय अर्थात् धर्म वही जीव प्राप्त कर सकता है जिसको ऊपर कहे अनुसार अन्दर में लगन लगी हो; वही आत्मार्थी मुमुक्षु मोक्षमार्ग अर्थात् धर्म, प्राप्त करने का पात्र-अधिकारी हो सकता है।
अत: उपरोक्त पात्रता प्रगट करके सम्पूर्ण समर्पणता एवं उग्र पुरुषार्थ के द्वारा धैर्यपूर्वक निजधर्म अर्थात् मोक्षधर्म के स्वरूप को समझना चाहिए।
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