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________________ १०८] [ सुखी होने का उपाय सुख प्राप्त करने की चेष्टा करता है। लेकिन पर वस्तु तो अपने आधीन नहीं होने से पुण्य योग से सफल हो जाता है तो राग करने लगता है और पाप के उदय में असफल होने पर द्वेष करने लग जाता है। यही इस ज्ञायकअकर्ता स्वभावी आत्मा को रागादि उत्पन्न होने का असली कारण है। अन्य कोई कर्म “नो” कर्म आदि का कारण कहना तो निमित्त की मुख्यता से किये गये कथन हैं। निम्न आगम प्रमाणों से भी यही सिद्ध होता है। इस प्रश्न का समाधान समयसार गाथा ३७०-३७१ की टीका के अंत में स्वयं प्रश्न उठाकर आचार्य श्री ने उत्तर दिया है, वह निम्नप्रकार प्रश्न :- तब फिर राग की खान (उत्पत्ति स्थान ) कौन-सी है ? उत्तर :- राग-द्वेष मोहादि, जीव के अज्ञानमय परिणाम हैं अर्थात् जीव का अज्ञान ही रागादि को उत्पन्न करने की खान है, इसलिये वे राग-द्वेष-मोहादिक विषयों में नहीं हैं, क्योंकि विषय परद्रव्य है और वे सम्यग्दृष्टि में भी नहीं है, क्योंकि उनके अज्ञान का अभाव है। प्रश्न होता है कि यह अज्ञान क्यों उत्पन्न होता है ? इसके स्पष्टीकरणरूप उक्त ग्रंथ की गाथा ३४४ की टीका में आचार्य श्री ने निम्नानुसार कहा है : “इसलिये ज्ञायकभाव सामान्य-अपेक्षा ज्ञानस्वरूप से अवस्थित होने पर भी, कर्म से उत्पन्न होते हुए मिथ्यात्वादि भावों के ज्ञान के समय, अनादिकाल से ज्ञेय और ज्ञान के भेदविज्ञान से शून्य होने से, पर को आत्मा के रूप में जानता हुआ वह ज्ञायकभाव विशेष-अपेक्षा से अज्ञानरूप ज्ञान परिणाम को करता है। अज्ञानरूप ऐसा जो ज्ञान का परिणमन उसको करता है।” इसी का समर्थन कलश १६४ में निम्नप्रकार किया है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001862
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size7 MB
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