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________________ चचेरी ' अर्थ - दुर्लभ मनुष्य जन्म जो मिला है, उसको तुम निश्चय करके सफल बनाओ । निष्कारण परोपकारो श्री सद्गुरू महाराज के दर्शनके विना वह जोवनकी सफलता किसी प्रकार से झटपट ( शीघ्रता से ) नहीं होती है ||३|| श्री सद्गुरुका स्वरूप बताते हैं: २० • सुगुरु सु वुच्चइ सच्चर भासइ परपरिवायि नियरु जसु नासइ सव्वि जीव जिव अप्पर रक्खइ मुक्ख - मग्गु पुच्छिउ जु अक्खइ ||४|| अर्थ- सुगुरू वे कहे जाते हैं, जो सत्य बोलते हैं । पराई निन्दा करनेवालोंका समुदाय जिनसे दूर ही भागता रहता है । सब जीवोंको जो अपनी आत्माके समान रक्षा करते हैं। पूछनेपर जो मोक्षमार्गको बताते हैं ||४|| Jain Education International जो जिण-वयणु जहहिउ जाणइ द ख का वि परियाणा | जो उस्सग्गववाय वि कारइ उम्मग्गिण जणु जंतर वारइ ||५|| अर्थ - जो श्री जिनेश्वर देवके अविसंवादी वचनों को यथावस्थित - जैसा हैं वैसा ही जानते हैं । जो द्रव्य क्षेत्रकाल और भावोंको भी ( संयम निर्वाह आदि हेतु भी भली-भांति पहिचानते हैं । जो उत्सर्ग और अपवाद विधिको भी यथास्थान करवाते हैं उन्मार्ग में जाते हुए लोगोंको जो रोकते हैं ॥२॥ इसी प्रसंग में लोकप्रवाह रूप नदी और द्रव्य नदीका श्लेषालंकारसे श्लिष्टस्वरूप बताते हैं : इह विसमी गुरुगिरिहिं समुट्टिय लोयपवाह- सरिय कुपइट्टिय जसु गुरुपोउ नात्थि सो निज्जइ तसु पवाहि पडियउ परिखिज्जइ ॥६॥ अर्थ - इस लोक में कुगुरु वचनोंसे समुत्थित महान् अनर्थ हेतु विषम लोक प्रवाह रूप नदी कुत्सित ढंगसे प्रतिष्ठित है । जिसके पास सद्गुरु रूप जहाज नहीं है ऐसे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001859
Book TitleCharcharyadi Granth Sangrah
Original Sutra AuthorJinduttsuri
AuthorJinharisagarsuri
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages116
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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