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चचेरी है ??? । परन्तु यदि व्याकरणकी ओर जिसका ध्यान कुछ भी होगा ? वह ऐसे पदको भी चमत्कारिक ढंगसे समझेगा । यहां एक मनोरंजक श्लोक याद आ गया वह लिख दिया जाता है।
अहं च त्वं च राजेन्द्र लोकनाथावुभावपि ।
बहुब्रिहिरहं राजन् ! षष्ठीतत्पुरुषो भवान् ॥ अर्थ-हे राजेन्द्र मैं और आप दोनों ही लोकनाथ हैं । पर फर्क इतना ही है कि बहुब्रिहि समाससे मैं लोकनाथ हूं, और आप षष्ठीतत्पुरुष समास से लोक हैं नाथ जिसके-ऐसा तो मैं 'लोकनाथ' हूँ और आप लोकोंके नाथ हैं इस लिये लोकनाथ हैं। अतः कर्त्ताने श्रीजिनदत्तगुरु शब्दका कैसे प्रयोग किया है यह ध्यानमें रखते हुए अर्थ होना चाहिये । इति
इति चर्चरी समाप्त
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