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श्रीमालकुलावतंस-परमजैनचंद्रांगज-ठक्कुरफेरुविरचिता
श्रीयुगप्रधानचतुष्पदिका।
अनुवादक श्रीबुद्धिमुनिजी सयलसुरासुरवंदियपाय, वीरनाह पणमवि जगताय । समरेविणु सिरिसरसइ देवि, जुगवरचरिउ भणुसु संखेवि ॥ १ ॥
वैमानिक व भवनवासी आदि देवताओंने जिनके चरणों में वंदन किया है, उन जगत् के पिता तुल्य भगवान् वीर प्रभु को प्रणाम करके ? एवं सरस्वती देवीका स्मरण करके मैं जुगप्रधानाचार्यो का चरित्र संक्षेप में ( नाम मात्र ) कहूंगा। ॥१॥ सुहँमसामि गणहर पमुह, सिरिजुगपवर नाम वरमंत, सुमाहु अणुदिणु भत्तिजय, लीलइ तरिवि भवोयहि जेम,
___कमि कमि पावहु सिद्धिसुह ॥ धुवकम् ॥ वडमाणजिणपट्टि पसिद्ध, केवलनाणी गुणिहि समिद्ध । पंचमु गणहरु जुगवरु पढमु, नमहु सुहंमसामिगुरु अममु ॥ २ ॥
हे भव्यात्माओं ? गणधर श्रीसुधर्मा स्वामी प्रमुख युगप्रधान आचार्यों का नाम रूप उत्तम मन्त्र को भक्ति सहित हृदय में हमेशा स्मरण करो, जिससे कि लीला के साथ इस संसार समुद्र तिरजाओ और क्रमशः क्रमशः सिद्धि सुख को प्राप्त करो (धुवपद) ___ भगवानश्रीवर्द्धमान जिनेश्वर के पाटपर किसी तरह की ममता से रहित गुणोंसे समृद्ध, केवलज्ञान को धारने वाले, पांचवे गणधर और प्रथम युगप्रधान गुरु श्रीसुधर्मास्वामी प्रसिद्ध हुए, उन को नमस्कार करो ॥२॥ भजा अट्ठ पंचसय तेण, इकि रयणि पडिवोहिय जेण । सुगुरुपासि लिउ संयमभारु, सरहु सरहु सो जंबुकुमारु ॥ ३ ॥
जिन्हों ने आठ स्त्रियोंको और पांचसौ चौरोंको एक ही रात में प्रतिबोध देकर सुगुरु श्रीसुधर्मास्वामी के पास संयम भारको ग्रहण किया था, उन जंबूकुमार मुनिवर को बारंबार स्मरण करो ॥३॥
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