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________________ नियम उसी अवस्था में लागू होगा जब कि किसी दूसरे नियम या कानून का होना प्रमाणित न हो (६)। अब यह नियम सिद्ध हो गया है कि एक स्थान का रिवाज दूसरे स्थान के रिवाज को प्रमाणित करने के लिए साबित किया जा सकता है और प्रासङ्गिक विषय है (१०)। यह भी माना जायगा कि हिन्दुओं की भाँति जैनी लोग भी एक स्थान से दूसरे स्थान को अपने रीति-रिवाज साथ ले जाते हैं, जब तक कि यह न दिखाया जाय कि पुराने रिवाज छोड़कर स्थानीय रिवाज ग्रहण कर लिये गये हैं ( ११)। रिवाज प्राचोन, निश्चित, व्यवहृत और उचित होने चाहिएँ । सदाचार के प्रतिकूल, सरकारी कानून के विरुद्ध और सामाजिक नीति ( public policy ) के द्रोही रिवाज उचित नहीं समझे जायेंगे। गवाहों की निजी सम्मति की अपेक्षा उदाहरणों और झगड़ेवाले मुक़दमों के फैसलों का मूल्य रिवाज को साबित करने के लिए अधिक है। ऐसा रिवाज जो न्यायालयों में बार बार प्रमाणित हो चुका है कानून का अंश बन जाता है और प्रत्येक मुकदमे में उसके साबित करने की आवश्यकता नहीं रहती है ( १२) (6) ज़बूरी ब० बुद्धमल ५७ इंडि० के० २५२ । (१०) हरनाभप्रसाद ब. मंडिलदास २७ कल. ३७६; अम्बाबाई ब. गोविन्द २३ बम्बई २५७ । (११) जकूरी ब० बुद्धमल ५७ इंडि० के० २५२; अम्बाबाई ब. गोविन्द २३ बम्बई २५७ । (१२) मु० सानो ब० मु० इन्द्राणी बहू ७८ इंडि० के० ४६५ नागपुर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001856
Book TitleJain Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherDigambar Jain Parishad
Publication Year1928
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Ethics
File Size9 MB
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