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________________ कि उनके मुक़दमे से हिन्दू-कानून लागू होता है (४)। धर्म-परि. वर्तन का, अर्थात् किसी जैनी के हिन्दू-धर्म स्वाकार कर लेने से उसके स्वत्वों पर कोई असर नहीं पड़ता ( ५ )। एक मुकदमे में, जो तजौर में हुआ था, जहाँ एक जैन विधवा ने जिसके कुटुम्बी जन किसी समय में हिन्दू थे अपने पति की आज्ञा के बिना पुत्र गोद ले लिया था, यह निर्णय हुआ था कि हिन्दू-कानून लागू होता है और दत्तक नीति-विरुद्ध है (६)। यह मुकदमा एक पहिले मुक़दमे से इस कारण असहधर्मी करार दिया गया था कि उसमें धर्म-परिवर्तन मुक़दमा चलने से सैकड़ों वर्ष पूर्व हो चुका था; और अनुमानत: उससे भी पहिले हो चुका था जब कि हिन्दू-लॉ का वह भाग, जो उस स्थान पर मुकदमे के समय चालू था, रचा गया होगा (७)। बङ्गाल के एक पुराने मुकदमे में हिन्दू-कानून का स्थानीय नियम जैनियों को लागू किया गया था, अर्थात् हिन्दूकानून की वह शाखा जिसका उस स्थान में रिवाज था जहाँ सम्पत्ति वाकै थी जैनियों को लागू की गई थी (८)। परन्तु इसके पश्चात् एक और मुकदमे में, जिसका जुडीशल कमिश्नर नागपुर ने निर्णय किया, इस फैसले का अर्थ यह समझा गया कि स्थानीय (४) सुन्दरजी दामजी ब० दाही बाई २६ बम्बई ३१६ - ६ बम्बई लॉ. रिपोर्टर १०५२ । (५) मानकचन्द गुलेचा ब० ज० से० प्राणकुमारी १७ कल० ५१८ । (६) पेरिया अम्मानी ब० कृष्णास्वामी १६ मदरास १८२ । (७) रिथुचरण लाल्ला ब० सूजनमल लाला ६ मद० ज्युरिस्ट २१ । (८) महावीरप्रसाद ब. मु. कुन्दन कुँवर ८ वीक्ली रिपोर्टर ११६; इसका प्री० क० का फैसला नं० २१ वीक्ली रिपोर्टर पृ० २१४ और उसके पश्चात् के पृष्ठों पर दिया है (दुर्गाप्रसाद ब० मु० कुन्दन कुँवर)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001856
Book TitleJain Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherDigambar Jain Parishad
Publication Year1928
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Ethics
File Size9 MB
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