SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टम परिच्छेद रिवाज रिवाज कई प्रकार के होते हैं, साधारण व विशेष, अर्थात् जातीय, कौटुम्बिक और स्थानीय । प्रत्येक मुकदमे में इनको गवाहों से साबित करना पड़ता है। कौटुम्बिक रिवाज के साबित करने के लिए बड़ी प्रमाणित साक्षो की आवश्यकता होती है। आजकल कानून के अनुसार न्यायालयों में जैन-जाति के मनुष्यों के झगड़े रिवाज-विशेष के अनुसार निर्णय किये जाते हैं (१)। रिवाजविशेष के अभाव में हिन्दू-कानून लागू होता है (२) हिन्दूकानून का वह भाग जो द्विजों के लिए है जैनियों के लिए लाग माना गया है ( ३)। बम्बई प्रान्त में एक मुक़दमे में एक मृतक पुरुष की बरसी के सम्बन्ध में भी हिन्दू-कानून लागू किया गया था यद्यपि बरसी का जैन-जाति में रिवाज नहीं है और वह जैन सिद्धांत के नितान्त बाहर व विरुद्ध है। परन्तु उस मुकदमे में विधवा एक ओर और दूसरी ओर मृतक का अल्पवयस्क पुत्र था और सम्पत्ति प्रबन्धक के प्रबन्ध में थी और सब पक्षों ने स्वीकार कर लिया था (५) शिवसिंह राय ब. मु० दाखो १ इला० ६८८ प्री० कां०; मानकचन्द गुलेचा ब० जगत्सेठानी प्राणकुमारी बीबी १७ कल० ५१८ । (२) अम्बाबाई ब. गोविन्द २३ बम्बई २५७; छोटेलाल ब० छन्नूलाल ४ कल० ७४४ प्री० कौं०, और देखो अन्य मुकदमे जिनका पहिले उल्लेख किया जा चुका है। ( ३ ) अम्बाबाई ब. गोविन्द २३ बम्बई २५७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001856
Book TitleJain Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherDigambar Jain Parishad
Publication Year1928
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Ethics
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy