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________________ संक्षेपतः वधू को जो कुछ विवाह समय मिलता है वह सब उसका स्त्री धन है ( ७ ) । ६ और विवाह के पश्चात् सब कपड़े और गहने जो उसको उसके कुटुम्बी जन या श्वसुर के परिवार जन देते हैं वह सब स्त्री-धन है ( ८ ) । इसी भाँति गाड़ी और घोड़े की भाँति के पदार्थ भी स्त्रीधन हैं ( ) । जो कुछ गहने, कपड़े कोई स्त्री अपने लिए अपने विवाह के समय पाती है और सब जङ्गम सम्पत्ति जो पति उसको दे वह सब उसका स्त्रीधन है (१०) । और वह स्वयं ही उसकी स्वामिनी है ( ११ ) । किन्तु वह किसी स्थावर - सम्पत्ति की स्वामिनी नहीं है जो उसे उसके पति ने दी हो ( १२ ) । यदि पति ने कोई गहने उसके लिए बनने को दे दिए हों जिनके बनने के पहिले वह (पति) मृत्यु को प्राप्त हो जाय तो वह भी उसका स्त्री-धन होंगे ( १३ ) । क्योंकि पति यदि द्रव्य उसको दे देता और वह स्त्री स्वयं गहने बनने को देती तो वही उसकी स्वामिनी होती न कि पति । स्त्रीधन पैत्रिक सम्पत्ति की भांति विभाग योग्य नहीं है (१४) । पिता के किसी कुटुम्बी को कोई ऐसी वस्तु पुनः ग्रहण नहीं करनी चाहिए जो उन्होंने विवाहिता पुत्री को दे दी हो या जो उसके ( ७ ) वर्ध० ३६ – ४०; श्र० १३६ – १३७; इन्दू ० ४६ | ० १३६ –१३७ ॥ (८) ( ६ ) इन्दू ० ४७ ॥ ( १० ) वर्ध० ५४, इन्द्र० ३ | ( ११ ) श्र० १४३ – १४४; वर्ध० ४५ । ( १२ ) इन्द्र० ३। ( १३ ) अह० १४४ । (१४) श्र० १४३ -१४४; इन्द्र० ४८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001856
Book TitleJain Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherDigambar Jain Parishad
Publication Year1928
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Ethics
File Size9 MB
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